ज्वालामुखी | Jvalaamukhii

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Jvalaamukhii by राजकुमार - Rajkumarश्री दुर्गाशंकर प्रसाद सिंह - Shri Durga Shankar Prasad Singh

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श्री दुर्गाशंकर प्रसाद सिंह - Shri Durga Shankar Prasad Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पन की अनावश्यकता को में भी मानता हूँ । लेकिन करू कया ? तुम शायद नहीं जानते, प्रेमी का हृदय अपनी समस्त भली-बुरी भावनाओं को अपने प्रेमी के सम्मुख रखने के लिये लालायित रहता है। हाँ, अपने आत्मसम्मान की रक्षा में वह भले ही प्रत्यक्षतः वैसा करते सङ्खचाता हो । इतना मुझको मानना ही पड़ेगा । इसीलिये, हृदय कौ आजिजी, प्रेम की प्रेरणा, लगन की प्राथना और जिगर कौ गुदगुदी से विवश होकर हृदयोद्राररूपी इस अचना को तुम्हारे सम्मुख मेने अर्पित किया, ओर साथ ही, प्रेम की मयौदा रखने के लिये--हृदय का मान निभाने के लिये- आत्मीयता के गौरव को ढोने के लिये--इसे वापिस भी ले लिया है ; नहीं तो हृदय की बातें ओर मन की आरकाक्षाएँ या तो इश्वर ही जानता होगा या तुम । बस; क्षमा करना ! तुम्हारा वही चिरपरिचित दुगाशंकर




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