आर्य्य मित्र | Aaryya Mitra

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Aaryya Mitra by विजयेन्द्र स्नातक - Vijayendra Snatak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ऋषि-बोधाडू ३ १+++++++++++++ ++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++%++१++ परन्तु ऋषि के ग्रन्थों को समझने के लिये पही अर्थ लेना आ्रावश्यक है। अन्यथा आन्ति होगी। इसी प्रकार “श्रार्य्यावर्त' | ऋषि ने अपने ग्रन्थों में जहाँ “श्राययावर्त! शब्द का प्रयोग किया है वह उसी अर्थ में किया हे जो “स्वमंतब्य”” में दिया है। इस शब्द के श्रथं “राज- नेतिक' कारणों से बदल्त भी सकते हैं। परन्तु ऋषि के ग्रन्थों में वही अर्थ लेना चाहिये । अब रहे ऋषि के शेष अन्थ | वह एक बहुत बढ़ा बन है । उसमें मुख्य, गोण और गौरो मँ मी तारतम्य के साथ कम गौण और अधिक गौण सभी आई जाते हैं । उसमें अपने अतिरिक्त दूपघरे ऋषियो या मान्य पुरुषों के निजञ् मतो के उद्धरण भी हैं। कहदी-कहीं कहानियों भी हैं, और कहीं कहीं सुनी-सुनाई ओर बिना जाँची हुई घातं भी रै । जने कद भारतीय राजो की बशावल्ली या उनके राज क्राज्ञ की अवधि 'कुछ अटकलें भी हैं जैसे जगनज्नाथपुरी के विषय में एक साधु की बताई हुई कुछ बातो पर अटकल' वहा स्पष्ट लिखा है कि शायद ऐसा होगा । इन समस्त प्रथो के सभी बचन, सभी शब्द्‌, सभी कथानक, या अन्य पुस्तको के दिये हये सभी प्रमाण न तो ऋषिवर के मतब्य ही थे न इन को ग्रार्यसमाज के सिद्धान्त ही कहा जा सकता हे | जो कोई स्वामी दया. नन्द के ग्रथो के हइर बचन और हर शब्द को तुल्य प्रामाण्य प्रदान करता है, वह ऋषि के मुख्य श्रभिप्राय को नहीं समझा । वह ऋषि का वास्तविक आदर भी नहीं करता और श्रायसमाज के लिये उल्लभनें उत्पन्न कर देता है। याद रखना चाहिये कि शास्त्र से शाख्रकार बड़ा द्ोता है । शाख शाख्कार की भावनाश्रो का एक स्थूल भ्रौर खढुचित रूपै । वेद मेँ कदा है “पादोऽस्य विश्वा भूतानि । मशीन का बनाने वाला मशीन से बहुत ऊँचा है । कालिदास रघुवन्श से बहुत बढ़ा था। ऋषि दयानन्द श्रपने ग्रथो से बहुल बड़े थे। उनके मस्तिष्के को समने के लिये उन सूष्म विचारों की खोज करनी होगी जो उनके प्रथो में समष्टि रूप से श्रोत परोत हैं। हमारे सामने बहुत-ती शकायें इसलिये उठती हैं कि हम इन तीन चीजों श्रर्थात्‌ (१) १० नियम ( २ ) स्वसतब्यामन्तब्य (३) और शेष ग्रथो के वास्तविक मुल्य का श्रकन करने से असमथ रहते हैं । और उर्नको भेदक भिक्ति की उपेद्या कर जाते हैं। यदि हम चाहते हैं कि आर्यसमाज सावभोम हो जाय झार उसका भविष्थ उज्ज्वल हो तो आयंसमाज फो विचार स्वातन्त्य का मान करना होगा यदि ऐसा नही करेंगे ता साम्प्रदायिकता और पारस्परिक कलह बटेगी। मेरो समभ में मुख्य-गौण विवेक आर्यसमाज क॑ नेताओ ক্ষ लिये चिन्त्य-तम समस्‍या है । 8.2 ब्रह्म-ज्योति ज्योति अखण्ड निरजन की, भरपूर प्रशघ्त प्रकाश रही हैं। दिभ्य-घटा निरखी जिसने, ऽसने दुविधा अ्रम की न गही है ॥ सिद्ध विज्ञोक बखान रहे, सब ने छुवि एक झअनम्य कही है । तू कर योग निहार चुका, अब शकर जीवन मुक्त सही है ॥ परमात्मा सर्व-शक्षिमान हे जिसने सब लोक रचे सत्र्कीं, उपजाय, बढ़ाय विनाश करे। सबका प्रभु, साथ रहे सबके, सबमें भरपूर प्रकाश करे ॥ सब अस्थिर-दृश्य दुरें दरसे, सब का सब ठौर विकास करे। वह शकर मित्र द्वितू सब का, सब दु,.ल द्वरे न हताश करे ॥ পপ सरि --महाकवि शकर द ९




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