प्रसादोत्तर नाटक में नायक | Prasadottar Natak Me Nayak

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Prasadottar Natak Me Nayak by डॉ आशा गुप्ता - Dr. Aasha Guptaनिरुपमा श्रीवास्तव - Nirupama Srivastav

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निरुपमा श्रीवास्तव - Nirupama Srivastav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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साहित्यदर्पएकार विश्वनाथ सर्गबद्ध रचना के मढाकाव्य मानते हैँ जिसका नायक कोई देवता अथवा धीरौदात्तादि गुण पे युन्त सदुवधी छाजिय हा | श्राचार्यं विश्वनाथ बनुसाए ~ नायक वह हनौ त्यागी, महान कार्यो का कर्ण, दूलीन, वभव स सम्पन्न , सुपवान, युवा, उत्साही, कलाओं का शाता, <वैं उध्योगशील ,लौकम्िय, तेजस्वी, परदग्ध्य सवं शील त्रादि गणां स युन्त হী | हिन्दी नाट्य वर्षण मेँ नायक की परि - माष इस प्रकार मिलती इ ~ प्रधान फल सम्पन्नौऽ व्यसनी पुष्य नायः; (७ )१६०।।* धर्न॑जय, शारदगतनय तथा रामचन्द्र झा मत इ ~ नायकं उवात चरित्र वाल बवता ओर दानव होते हैं, किन्तु विश्वनाथ ने धीरो- दा नायक देवता ऋद्‌ मनुष्य माना ह ।४ (८ ০ রঙ मै कन छर ६, सर्ग बन्धो महाकाव्यं तमो नाय; एर | सदुर्वश: काजियावापि धीरोदाव: गृणा न्विति; ।। ६-३१५-३१६ साहित्य दर्षपा नविश्वमाथ ( हा० सल्यव्रत सिंह), पु० ५४६- ५ है ४४० २. त्यागी कृती बलीन सु्रीक्रो रूप योवनोत्साही दक्ष 15 नुर॒जतलाकस्तेजा वदग्ध्य शीलवन्तः ।। ३-३० ।। हिन्दी साहित्य दर्पणा, विश्वनाथ ० सत्यव्रत सिंह, पु०१३८ क ` পা य भूर ध विकृ छ ३. न्दी नाट्य दर्पएठा,+ प्रधानसम्पादङे,ढा० गन्द, पृण ३७२ +चतु ४. नाट्य समीक, दश्एय ओ, पुण २५५ प्रथम सँस्करएा |




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