प्रसादोत्तर नाटक में नायक | Prasadottar Natak Me Nayak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
31 MB
कुल पष्ठ :
321
श्रेणी :
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डॉ आशा गुप्ता - Dr. Aasha Gupta
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निरुपमा श्रीवास्तव - Nirupama Srivastav
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)साहित्यदर्पएकार विश्वनाथ सर्गबद्ध रचना के मढाकाव्य
मानते हैँ जिसका नायक कोई देवता अथवा धीरौदात्तादि गुण पे युन्त सदुवधी
छाजिय हा | श्राचार्यं विश्वनाथ बनुसाए ~ नायक वह हनौ त्यागी,
महान कार्यो का कर्ण, दूलीन, वभव स सम्पन्न , सुपवान, युवा, उत्साही,
कलाओं का शाता, <वैं उध्योगशील ,लौकम्िय, तेजस्वी, परदग्ध्य सवं शील
त्रादि गणां स युन्त হী | हिन्दी नाट्य वर्षण मेँ नायक की परि -
माष इस प्रकार मिलती इ ~ प्रधान फल सम्पन्नौऽ व्यसनी पुष्य नायः;
(७ )१६०।।* धर्न॑जय, शारदगतनय तथा रामचन्द्र झा मत इ ~ नायकं
उवात चरित्र वाल बवता ओर दानव होते हैं, किन्तु विश्वनाथ ने धीरो-
दा नायक देवता ऋद् मनुष्य माना ह ।४
(८ ০ রঙ मै कन छर
६, सर्ग बन्धो महाकाव्यं तमो नाय; एर |
सदुर्वश: काजियावापि धीरोदाव: गृणा न्विति; ।। ६-३१५-३१६
साहित्य दर्षपा नविश्वमाथ ( हा० सल्यव्रत सिंह), पु० ५४६-
५ है ४४०
२. त्यागी कृती बलीन सु्रीक्रो रूप योवनोत्साही
दक्ष 15 नुर॒जतलाकस्तेजा वदग्ध्य शीलवन्तः ।। ३-३० ।।
हिन्दी साहित्य दर्पणा, विश्वनाथ ० सत्यव्रत सिंह, पु०१३८
क ` পা य भूर ध विकृ छ
३. न्दी नाट्य दर्पएठा,+ प्रधानसम्पादङे,ढा० गन्द, पृण ३७२ +चतु
४. नाट्य समीक, दश्एय ओ, पुण २५५ प्रथम सँस्करएा |
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