सियाराम शरण गुप्त | Siyaram Sharan Gupt
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
217
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१२. सियारामशरणा:
सुनकर मुसकरा गये। वे पहले ही वहुत व्यस्त थे। यह तो भावी पीढ़ी
का काम है कि उनका आदर्श अपनाकर उसकी रक्षा करें !
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हायुद्ध के समाचारों में रेडियो द्वारा दोनों ओर से वमबारी का बखान
सुन-सुनकर सियारामशरण के मन में जो प्रतिक्रिया हुई उर्सी का परिशाम उनका
“उन्मुक्त! है| जिस सामू हिक हत्या के लिए दोनों पत्नी को लब्जा होनी चाहिए
थी, उसी पर वे घमंड करते थ। वह भी विश्व-शान्ति के नाम पर। अपने
(नकुलः काव्य में स्थारामशरण ने জী लिखा है वह भी इस प्रसंग में
स्पर्सीय है £
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मुककों तो विश्वास नहीं हू रंचक इससें,
द्ये कते अशत बभे स्वयमपि जपे विषमें।
विना श्ममभियोग श्रात्रात क्रिये उदात्त मार्वा कौ श्रमिव्यक्ति क्रिस प्रकार दौ
सकती है, नकुलः के युविष्ठिर में मानो इसका प्रमाण उन्होंने दिया है |
ग्रोद्य की अपेत्ना विनय में निजत्व की रक्षा कठिन होती है। 'नकुल! में
मनुष्य को उदार परमरा की अत्नयता का अपना विश्वास भी उन्होंने प्रकट किया
ই | परन्तु कुबेर के सेवक का जा चित्रशु उन्होंते किया है उसमें एक स्थान
पर उनसे मेरा मतभेद रहा है | |
देश में इतनी बड़ी बना घट गईं, हम लोग परचक्र में पिसने से मुक्त
पा गये ओर भारत स्व॒तन्त्र हो गया। परन्तु हमने उसका महत्व नहीं समझकता।
इससे उन्हें पीड़ा होतो है कि अयना कत्तेत्य निभाना तो दूर, हम अपने
अचकारी नेताश्रों पर उल्टा व्यंग्य बिद्र प् करते हैं । उनके मत में कठिनाइयाँ:
स्वाभाविक हैं। आगे चलकर वह वे स्वयं दूर हो जायँगी | हमारी दासता के
दोष मिय्ते-मिठते मिरंगे। जा लोग स्वयं कुछु नशे करते अथवा जो अपनी
ही घात में रहते हैं वे ही दरों के द्वारा हथेली पर उगाई सरसों देखना चाहते हैं ।
स्वार्थी, व्यवसायी और राज्य के सेवक जव ऐसी-बैसी बातें करते हैं तब बहुधा
वे उत्तेजित हो उठते हैं। वे बहुत विनीत हैं परन्तु अयनी बात कहने का साहस
उनमें हे । एक बार किती प्रकंग में सहता वे मुझसे कहने लगे, “तुम तो कभी
कमी बापू के विरोधी पक्ष के स्तर पर-उतरकर बोलने लगते हो |” |
श्री सुभाषचन्द्र बसु जब्र उत्तरप्रदेश में दौरे चिस्गाँव पधारे थे, उसके
कुछु ही पहले बंगाल में गाँधोजी के साथ दुव्यवहार किया गया था। अपने
स्वागत-मायण में सियारामशरण ने सुमात्र बाबू से उसका प्रायश्चित्त करने
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