धूप - लता | Dhoop-lata

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Dhoop-lata by इलाचन्द्र जोशी - Elachandra Joshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१५ धूप-लता ओर हेनरी फोर्ड से कई गुना अधिक धन्य समकता हूँ । पशु- जीवन की जिस सरल, अलस शांति का अनुभव इस समय में कर रहा हूँ उसका अनुभव क्या इन घोर कमज्बर विताड़ित, अनंत घन-लालसा-मत्त पुरुषों को कभी स्वप्न में भी हो सकता है ? | ' असल बात यह है कि वे एक चरम सीमा पर पहुचे है ओर में दूसरे चरम सिरे पर | हम दोनों की ही आत्माएँ रोग- ग्रस्त हैं। वे अपनी जज रित आत्मा के ज्वर की तीत्र बेदना को तीदशता से अनुभव कर रहे हैं, ओर में मीठे पर घातक ज्वर के गुलाबी नशे से मधुर मोह की निद्रा को क्रोड़ में कूस रहा हूँ। वे सन्निपातग्रस्त है ओर में क्षय रोग से विकल हूँ । पर यह क्या | अलौकिक तान मे यह बसरी कहँ बजती हे 1 क्रिस पहाड़ के ऊपर से होकर कैसी स्वर -लहरी मेरे कानों मे अकर अक्रत होती है ? क्यों मेरे स्तन्य हृदय की सुप्र অবলা अकस्मात्‌ तलमलाने लगी है ! अपरिचित पथिक ! सुख की नींद मे सोरे हुए मेरे उन्मत्त यौवन को तथा प्रवेगमय नवीन जीवन की भावनाओं को मत जगाओ मेरे मानस के हँस को कमल-दल की पंकिलता में ही बिचरने दो ; सुदूर हमालय की उन्मुक्तता की यर इवे आकर्षित मत करो । बाँसुरी की उज्ज्वल, मीठी बेदना उल्कापात की तरह मेरे अंधकार हृदय में क्षणिक उल्लास संचारित करती हुई शून्य में विलीन हो गयौ ! तषणमर ॐ लिए पूवे परिचित, विस्मरतस्वगंके चैतन्य का अनुभव करके मेँ फिर अपने बतेमान नरक के प्रक में निपतित होकर दुगन्धि मे सेड्‌ रहा, हं । बाबू लोग आये और सैर करने चले गये। आज ताश के अड्डे मे जाने की तनिक भी इच्छा नहीं होती । चारपाई परर




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