अश्क की सर्वश्रेठ कहानियाँ | Ashk Ki Sarvsrestha Kahaniyan

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Ashk Ki Sarvsrestha Kahaniyan by उपेन्द्र नाथ अश्क - UpendraNath Ashak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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डाची १३ किन्तु उसके पिंता मे अपना पैत्रिक काम छोड़कर मज़दूरी करना शुरू कर दिया था | उसके बाद बाक़र भी इसी से अपना आर अपने छोटे-से कुटम्न का पेट पालता शा रहा था । चह काम अधिक करता हो यह बात न थी । काम से उसने सदैव जी चुराया था । चुराता भी क्यों न जब उसकी बीवी उससे दुशुना काम करके उसके भार को बँटाने श्र उसे श्राराम पहुँचाने के लिए मौजूद थी । कुट्टम्ब बड़ा न था--एक बह एक उसकी पत्नी श्र एक नन्हीं-सी बच्ची फिर किस लिए वहद जी हलकान करता पर कर श्रौर बेपीर विधाता--उसने उस सुख की नींद से जगाकर उसे अपनी ज़िम्मेदारी समझने पर विवश कर दिया । उसे बता दिया कि जीवन में सुख ही नहीं झाराम ही नहीं दुख भी है परिश्रम मी है । पाँच वर्ष हुए. उसकी बह्दी आराम देने वाली प्यारी बीवी सुन्दर शुड़िया-सी लड़की को छोड़कर परलोक सिधार गयी थी । मरते समय अपनी सारी करुणा को अपनी पथरायी अाँखों में बटोरकर उसने बाक़र से कहां था मेरी रज़िया तब तुम्दारे हवाले है इसे तकलीफ़ न होने देना इसी एक वाक्य ने बाक़र की ज़िन्दगी के धारे को पलट दिया था । उसकी मृत्यु के बाद ही वह झपनी विधवा बहन को उसके गाँव से ले झाया था और अपने तथा प्रमाद को छोड़कर अपनी मृत पत्नी की शन्तिम को पूरा करने में संलग्न हो गया था । वह दिन-रात काम करता था ताकि अपनी सतत पत्नी की उस धरोहर को उस नन्दीं-सी गुड़िया को तरह-तरह की थीज़ें लाकर असंन्न रख सके । ज्र भी वह मंडी से लौटता नन्हीं-सी रज़िया उसकी टाँगों से लिपट जाती श्र अपनी बड़ी-बड़ी आँखें उ्तके गदं से अठे हुए चेहरे पर जमाकर पूछुती ्ुन्ना मेरे लिए कया लाये हो ? तो वह उसे श्पनी गोद सें ले लेता और कमी मिठाई श्रौर कमी खिलौनों से उसकी भोली मर देता । तब रज़िया उसकी गोद से उतर जाती श्रौर श्रपनी सहेलियों को अपने खिलौने या मिठाई दिखाने के लिए भाग जाती । यही गुड़िया जब श्राठ वर्ष की हुई तो एक दिन कर अपने श्रब्त्रा से कहने लगी श्रब्चा दम तो डाली लेंगे शब्ना हमें डाची




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