भारती का सपूत | Bharati Ka Sapoot

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Bharati Ka Sapoot by रागेय राघव - Ragey Raghav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका भारतेन्दु हरिश्चन्द्र हिंदी के पिता माने जाते हैं महाकवि रत्नाकर ने उन्हें भारती का सपूत कहा है | किंतु उनके विषय में श्रनेक ऐसी बातें सुनाई देती हैं कि संदेह सा होता है | क्‍या ऐसा खर्चीला, घर फूँक व्यक्ति, जिसका संबंध वेश्याओं से जोड़ा जाता है, वह सचमुच भारती का सपृत हो सकता है ! इसके श्रतिरिक्त लोगों का मत यह है कि विलासिता के कारण ही उन्हें तपे- दिक होगई थी, और चू कि वे पान बहुत खाते थे, कितने ही दिन तक तो यह ज्ञात ही नहीं हो सका कि बे खून थूकने लगे थे । कुछ लोगों का मत है कि साहित्य के दृष्टिकोण से ही देखने पर भारतेन्दु का काव्य और नाटकादि कोद बहुत उच्चकोटि की सचना नहीं हैं, परन्तु क्योंकि उनके पास धन बहुत था, वे इसी कारण इतने प्रसिद्ध हो गये ये, ऐसे लोगों का ही कथन यह भी है कि जो बड़े बड़े राजा महाराजा, अ्ज्धरेज आदि उनसे मेल मुलाकात रखते ये वह इसीलिए कि उनकी सामाजिक स्थिति बहुत अच्छी थी । अब यह निश्चय पूबंक तो कोई नहीं कह सकता कि ऐसे तर्को' में कोई तथ्य ही नहीं हे । यह सच है कि वे काफी धनवान थे | उनकी दान की कहा- नियाँ उनकी इसी सामथ्य का इंगित करती हैं । कोई दरिद्र लेखक होता और




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