ज्ञानार्णव प्रवचन भाग - 4 | Gyanarnav Pravachan Bhag - 4
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
138
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)गाथा २०० १३
स मनुप्यका छन्तिम ल्य ই ब्रह. चये । ब्रह्म सायने आत्मा उसमें चर्य
मायते मग्न हो जानना । आत्मामें सग्त हो जाना यह दी है धर्मका एत्कृष्ट
रूप | धर्म किसलिए किया जाता है? आत्मा आत्मामें मग्न हों जाय,
(ऊ्सी औ प्रकारकी कह्पनाएँ न उठे, रागढ्णघ सोह समता सकहप विकल्प
चिन्ता शोक किसी भी प्रकारके विकरप न रहें. ओर यह आत्मामें निर्वि-
জজ मग्स हो जाय, यही है घमम करनेका असली प्रयोजन | इस प्रयोजनको
जौडफर यदि अन्य प्रयोजन मन्तमें आते हो, इस दुनियामे अपना मजहव
फैलाना, लोगॉको अपने घर्मकी वात चताना, अपने घसका प्रचार स्रना
लोग समभ जायें कि यह ममाज बहृत उत्कृष्ट है, अथवा लोम्मे यश
मिलता है धर्मकी वात कम्नेसे। मो इस उपायसे यश सिन्ने अथा चिपय
कपायके प्रयोजन सिद्ध होते है धर्मके करने से; सुख समृद्धिया होती हैं,
४ ५ 1 ह
स्वर्ग मिलता दै, पुण्य वेधा है आदि प्न्य प्रयोजन रखकर धर्मपालन
करे कोई तो घह धर्मपालन नहीं है । जिससे छ'पने उद्देश्य पहिले बनाये
ही नहीं हे उसको धर्मकी दिशा नहीं सिल्ती | धर्म कश्नेका सृत्ष प्रयोजन्न
टै यह् ब्रह चयं । चात्मा आ त्मार्मे मस्त हो जाय | तो इस #ह उण्की सिद्धि
के लिए हमें क्या करना पडता है ? घह्द ढंग बताया है १० अगॉमें ।
सत्यधर्मका विफास--पहिले तो आत्माकी सफाई करे। कपायोंसे
मल्ित यह आत्मा कपायोसे उवकर अपने प्रभुका घात क्र रहा है और
प्रभुमें सग्न नहीं हो सक रहा है। अत्तः पहिल्ले कपायोंका अभाव करप्ता
गुस्सा न रहे! झभिमानकी वात न श्याये मायाचार न रहे। फिसी भी
परचस्तुका लोभ न रद्दे । जब ये घारों कपायें नहीं रहती है तब आत्मामे
सत्य प्रडट होता है। जब तक ऊपाये हैं तव तक वह श्रास्मा असत्य है,
गलत है । स्थन्छता होने पर ही समीचीनता प्रक्ट होती है । तो चारों
फपाये जब नही रहीं तव इस्मे श्वो अत- सत्य धर्म प्रकट हुआ | अब
सफाई आायी आत्मामें | कपायोंके रहते हुए आत्मामें सन्चाई नहीं रहती ।
मोटे रूपमे भी देखिये तो सत्यपालनकी वात तव तक नहीं वन पानी दै
जब तक फपाये मद न हों। जिसे शुस्सेकी प्रकृति ण्डी है वह गुस्से मे कई
আর বৃ শীল सकता है | अधिसानी लोग मृठ बोला ही करते हैं| साया-
घारमे तो भूठमृठका ही काम है। लोभ क्पायके बश होकर लोग झूठ
नोज़ते हो हैं। तो जहा कपांथ चग रही है. बहा सच्चाई केसे हो सकती
ह श्रो ज्तर तक सच्चाई नहीं झा सकती हैं तव तक घर्मका पालन सही
हगसे हो दी नहीं सकता । इसी कारण घर्मके प्रकरणामें क्षमा) नम्नता,
सरलता श्वर उदारता पश्चात् सत्यका त्रम दिया हैं ।
सयमपर्म--ज्ञव थात्सा खत्य हों गया तो इसका धान संयत वन
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