समाज दर्शन | Samaj Darshan

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Samaj Darsan by Ramrkh singh sahagal- रामरख सिंह सहगल

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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डी रेल भला जिस श्रमागे देश में इतनी बाल विधवाएं दो बाल विवाह का पेसा प्रचार हा दहेज की कुप्रथा मार कर भी रोने न देती हा जिस देश में सन्नी शिक्षा का पसा शभाव हो जिस समाज का नियम इतना कड़ा हो जद्दां श्रात्म हृत्यारी ख्रियो की संख्या झ्रपार हो । जिस समाज के नियम इतने कड़े हा जहां सख्त्रियो .का इतना अपमान दा आर इतना सामा- जिक झनाद्र होता हो भला वह देश केसे उन्नति कर सकता है? कौन ऐसा भारतवासी है जा यह जान कर दृदहल न जावे कि भारत में २० वर्षा की श्रायु के भीतर १ करोड़ ६० लाख पुरुषों श्रौर २ करोड़ ६० लाख स्त्रियों का. विवाह दो जाता है । याने प्रति सेकंड़ा १० पुरुष श्रौर प्रति सेंकड़ा २७ स्त्रियां २० चरष की आयु के पहिले दी विवाह के बंघन में बंध जाती हैं । १० वष की विवाहिता बाल काझों की संख्या २० लाख श्रोर १५ वष॑ की _ विवाहित बालिकाओं की संख्या £० लाख है | सामाजिक कुरी तियां के विषय में हम यहां कुछ नहीं कहना चाहते हमारा मतलब केवल यह था कि जहां तक हो सके इन कुरी तियें का संत्रद्द कर उनके विषय श्रड्डू सहित 17६८६ 600 क्पूडपाब७छ पाठकों के सामने रख दे । हमारा उद्देश संसार को पाठ पढ़ाना नहीं है । मजुप्य स्वयं अपने बुद्धि श्र विवेक से श्रपना मागे स्थिर रूर सकता है । केवल इसी लक्ष के सामने रख कर यह पुस्तक तथय्यार की गई हे । इसमें मेरा मुख्य काय्य केवल संश्रद्द मात्र है । जिस प्रकार कारीगर कई तरह के मसालें का प्रयाग करके पक सुन्दर महल निर्माण करता हे अथवा यें कहिए कि जिस प्रकार माली रह बिरडे फूलों को एकत्रित करके एक गुलदस्ता तय्यार करता है हमने भी ठीक वैसा दो




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