श्रीमद्भगवद्गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र | Shrimadbhagavadgeeta Rahasya Athava Karmayogashastra

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Book Image : श्रीमद्भगवद्गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र  - Shrimadbhagavadgeeta Rahasya Athava Karmayogashastra

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about बाल गंगाधर तिलक - Bal Gangadhar Tilak

Add Infomation AboutBal Gangadhar Tilak

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
प्रस्तावना 1 . ` १५ अध्यात्म-दृष्टि से इन प्रश्नों का विचार अब तक हो रहा है और इन आध्या- त्मिक अन्यकारों के विचार गीताशास्र के सिद्धान्तों से कुछ अधिक भिन्न नहीं है। तारस्य के भिन्न भिन्न प्रकरणों में जो तुलनात्मक विवेचन दहै, उन यह बात स्पष्ट हो जायगी। परल्तु यह विषय अत्यन्त व्यापक है, इस कारण पश्चिमी पण्डितो के मत का जो सारा विभिन्न स्यो पर हम ने दे दिया है, . उसके सम्बन्ध मेँ यह इतना बतला देना मावद्यक है फिं गीताथं फो प्रति- पादन करना ही हमारा मुख्य काम है, सतएव गीता के सिद्धान्तो को प्रमाण मान कर पश्चिमी मतों का उल्लेख हमने केवछ यही दिखाने के लिये किया है कि, इन सिद्धान्तों से पश्चिमी नीतिशासतरशों अथवा पण्डितों के सिद्धान्तों का कहाँ तक मेल है। और, यह काम हमने इस ढँग से किया है कि जिस में सामान्य मराठी पाठकों को उनका अथे समझने में कोई कठिनाई न हों। अब यह निर्विवाद है कि इन दोनों के बीच जो सूक्ष्म भेद हैं,--ओर ये हैं भी बहुत---अथवा इन सिद्धान्तों के जो पूर्ण उपपादन या विस्तार है, उन्हें जानने के लिये मूल पश्चिमी ग्रन्थ ही देखना चाहिये। पश्चिमी विद्वान कहते हैं कि कमे-मकम- विवेक अथवा नीतिशात्र पर नियम-बद्ध ग्रन्थ सब से पहले यूनानी तल्ववेत्ता अरिस्टाटल मे लिखा है। परन्तु इमारा मत है कि अरिस्टाटछ से मी पहले, उसके गथ की अपेक्षा अधिक व्यापक और तात्विक दृष्टि से, इन प्रश्नों. का विचार महाभारत एवं गीता मै छे चुका था; तथा मध्यात्मदषटि से, गीता भै जिस नीतितत्व का प्रतिपादन किया गया है, उससे मिन्न कोई नीतितत्व अब तक नही निकला है । ' ठन्यासियों के समान रह कर तत्वशान के विचार, में शान्ति से आयु विताना अच्छा है, अथवा अनेक प्रकार की राजकीय उथला-पयल करना भला है?--इस विषय का जो खुलासा सरिर्यायलने किया है वह गीता में है; और साक्रेटीज के इस मत का भी गीता में एक प्रकार से समावेश हो गया है कि “ मनुष्य जो कुछ पाप करता है, वह अज्ञान से ही करता ইঃ क्‍योंकि गीता का तो यही सिद्धान्त है कि ब्ह्मशान से बुद्धि सस हो जाने पर, फिर मनुष्य से कोई भी पाप हो नहीं सकता । एपिक्युरियन और स्टरोइक पन्था के यूनानी पण्डितें! का यह कथन भी गीता कौ आहय हैं कि पू्ण ज- वस्था में पहुँचे दु ञानी पुष्प का व्यवहार ह नीतिद्टया सव के लिये आदश के समान प्रमाण है; और इन पन्यवाललों ने परम ज्ञानी पुर्‌ का जो वर्णन किया है बह गीता के स्थितप्रश्ञ अवस्थावाले वर्णन के समान है) भिः सर्‌ सौर कौट प्रति आधिभौतिक-वादियो का कथन है कि नीति की पराकाष्ठा ` सयवा कौट यी है कि प्रयेक मनुष्य को सारी मानवजाति के हिताय




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now