श्रीकान्त [भाग-२] | ShriKant [Bhag-2]
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
277
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ४५ )
तबलची नथा अन्य दो-एक भले आदमी भी उन्हीं के
साथ साथ प्रस्थान कर गये जूमींदार साहब के मन का
भाव श्रकसमात् क्यों वरिगड़ गया, इसका कु भी पता मैन
पा सका |
रतन ने आकर कहा--मा जी, बावू का बिछोना कहाँ
बिदाया जाय !?
पियारी ने खीक के साथ कहा-क्या कोई ओर कमरा
नहीं है ? मुझसे ভিলা पूछे क्या तू रत्ती भर भी अपनी बुद्धि
नहीं जच कर सकता रतन ? जा यहां से !
यदह कहती हुई रतन के साथ ही पियारी भी चली गई ।
मैंने अच्छी तरह देख पाया, मेरे आकस्मिक शुभागसन से
इस घर का भाव-केन्द्र बहुत अधिक विचलित हो उठा है।'
किन्तु पियारी ने दम भर बाद लोट आकर मेरे मुंह की ओर
कुछ देर ताकते रहने के उपरान्त कहा--इस तरह अचानक
केसे आना हुआ ९
मैंने कहा--देश-गॉव का आदमी ठहरा; बहुत दिनों से
देख न पाया था, इसी से अत्यन्त व्याकुल द्वी उठा था बाई जी !.
पियारी का मुँह ओर गम्भीर दो गया। मेरी इस दिल्लमीः
में कुछ भा शामिल न हं!कर उसने कहा--आज रात को यहीं
रहोगे न ?
मेंने कहा--रहने को कहो तो रहेँ ।
पियारी ने कहा--मेरा कहना-सुनना क्या है! मगर हो,
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