सविता अथवा शेष का परिचय | Kavita Athwa Shaish Ka Parichay

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Kavita Athwa Shaish Ka Parichay by शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय - Sharatchandra Chattopadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१५ बिटिया । माँ दुर्गा तुम्हें घन और दूध-पूत से सदा सुखी रखेंगी। इतना कह कर बूढ़ा गुमाइता जोर से रोने लगा । सुनकर तारक की आँखें भी सजल हो उठीं । राखाल कहने लगा-+मेरे पिता का श्राद्ध और महामाया दुर्गा की पूजा दोनों ही काम निवट गये । तेरस के दिन यात्रा करके, चिरकाल के लिए देश छोड़कर, उनके स्वामी के घर में आकर मैंने आश्रय लिया । वह दूसरी पत्नी थीं, इसीसे सभी उन्हें नई-माँ कहते थे। मैं भी नई-माँ कहने लगा। सास- समर नहीं हैं; लेकिन सगे-सम्दन्धी वोष्य-परिजन बहुत हैं।आथिक दशा ग्रच्छी है, धनी भी कहें तो कह सकते हैं । इस घर की वह केवल ग्रहिणी ही नहीं, पूरी स्वामिनी हैं--वह जो करती हैं वही होता है। स्वामी की अवस्था अधिक है, बाल सफेद हो चुके है । लेकिन उनका स्वभाव बच्चों का-सा सरल है । ऐसे मीठे स्वभाव का मनुष्य मैंने और कभी नहीं देख।। देखते ही अपने लड़के जैसे प्यार और आदर से मुझे ग्रहण किया । देश में उनके वाग-वगीचा, घरती और वेती-वारी भी थी, दो-एक छोटे-मोटे तालुके भीये प्रौर कलकत्ते में कोई एक व्यापार भी चल रहा था। लेकिन वह अधिकांश समय घर में रहते थे और तब लगभग ्राधा दिन उनका पूजा-घर में ब्यतीत होता था ठाकुर की सेवा में, पूजा-9ह्लिक में, जप-तप में । मै स्कूल में भर्ती हुआ । किताब-कापी-पेन्सिल-कागज-कलम आया; कुर्ता- घोती, जूता-मौजे कई जोड़े श्राये । घर में पढ़ाने के लिए मास्टर रखा गया। जैसे मे! इसी घर का लड़का हूँ । यह बात सब जैसे भूल गये कि निराश्रय जानकर नई-माँ मुझे प्रपने साथ ले आई हैं ।--तारक, इस जीवन मेवे सुल के दिन अ्रव फिर नहीं लौटेंगे । श्राज भी मैं चुपचाप लेटा-लेटा वही सब वातें सोचा करता हूँ । इतना कहकर राखाल चुप हो गया और बहुत देर तक न जाने कसा अ्रनमना-सा हो रहा । तारक ने कहा--राखाल, न जाने क्‍यों मेरी हृदय घड़क रहा है। अच्छा, उसके पदचात्‌ ? राखाल ने कहा--उसके पश्चात्‌ इसी प्रकार बहुत दिन बोत गये । स्कूल




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