प्राचीन पद्ध प्रभाकर | Prachin padh prabhakar

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Prachin padh prabhakar by पं. सीताराम चतुर्वेदी - Pt. Sitaram Chaturvedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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३१ जाहात्ना ररदार। विक्रम की पंद्रदर्वी ओर सोलहवीं शताब्दी में वेष्छव धभे का श्रान्दोरन देश के कोने-कोने में फेल रहा था, जिमके प्रधान अन्तको नें महा५२ श्रौ वस्लमाचायंजी ये | आपका जन्म सं० १५३५ में हुआ था और गोलो+०।ख सं« १५८७ मे । स्वामी शंकराचाय ने निगण को ही अक्ष का पारमार्थिक सम्प कदा था, और सगुण को व्यावहारिक या भायिक <५ | परन्तु महाभुजौ ने गुण को ही अलणी पारमार्थिक रूप बतलाया ओर निगु ण॒ को उत्तका आअंशत: त्रोहित रूप । इन्होंने भक्ति की साथना के लिये ५५ को भूख ओर अद्धा को सहायक माना है। भह्ाप्रसुजी ने मथुरा में अपनी भद्दी स्थोषित की और वल्लभ सम्प्रदाय चलाया | महाप्रभु ओर उनके धुत गो० विणनाथजी के शिष्यों में से आ० जय शिष्य थे, जो ४६०७/५ के नाम से विख्यात ये। उनके শান বহু दास, कुंभनदास, गोविंद स्वामी, चएुसुजदास, छीत स्वामी, नन्‍्ददास, ३५०णएदास, और परमानन्ददार्स | ये सभी कवि ओर #ष्णोपासक भक्त थे | इनकी रचनाओं से ब्रजभाषा को बहुत ऊँचा स्पान मिला, जिनमें सूरदास जी की रचना सवर्रेष्ठ मानी जाती है | वब्लम-संप्रदाय के श्रचुयाधियों ने ५५ -वन्द की प्रेम लीला का ही गुणादुवाद किया और उनकी शगारा- मक भूत्ति की ही उपासना चंदाई। उन्होंने ४०७ के लोक रच्तक और घेम-संस्थापक रूप को लोक के साभने रखने की आवश्यकता नहीं समझी, ५ध्युत राधा३५७ की प्रेमलीला ही धन ने गाई | छुतराम सभी कंष्णुभक्त कवि श्रीमऋाभवत में वर्णित #ष्ण की ब्रजलीला को दी नले +९ चले | भद्दात्मा यूरदासजी का जन्म मथुरा ओर आभरे के वीच रुनकता आभ में हुआ | यह सारस्वत ब्राक्षण ये जन्माघ थे या वाद में अंजे हुए शव पर भपमेद है | कुछ . लोग तो इन्हें -वन्दः परदाई फेचशज च ह




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