गोस्वामी तुलसीदास | Gosawami Tulsidas

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Gosawami Tulsidas by रामचन्द्र शुक्ल - Ramchandar Shukla

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रकृति और स्वभाव ११ समय घथय पर प्रियतम के साय सयोग हुआ करता है। ५५ कृष्णोपासफ संप्रदाय स्वामी प्राणनायनीने चसयायानजोनतो द्वारका, इंदावन नादि तीर्थों को फोई महत्व रेता दैश्रौर न मदिरो में श्रीकृष्ष फी भूतियों फा दशन फरने जाता है। व६ इस वृदावन ओर इसमें विहार करनेवाले कृष्ण को गोलोफ फी नित्यलीला फी एक छाया मात्र मानता है | শি प्रफार मद, प्याला, भृज्छी श्रोर उन्माद सूफी रहस्यवादियों का एफ लक्षण है उठी प्रकार प्रियतम ईश्वर के बिरह फी बहुत पी चंढी भाषा में व्यंजना करना मी सूफी कर्विर्यों फी एक रूछि है। यह रूढि भारतीय मक्त फेनियों के विनय में न पाई जायगी | भारतीय भक्त तो श्रपनी व्यक्तिगत सचा के बाहर वन भगवान्‌ का नित्य लीलाक्षेत्र ऐेखता है। उसके लिये निर्ह कैषा ९ अपनी भक्ति-पद्धति के भीतर गोस्वामीजी ने किस प्रकार शील और सदार को भी एक श्रावश्यक श्रग के रूप में लिया है, यह बात 'शील- साधना औ्रौर भक्ति के अ्रंतर्यंत दिखाई जायगी | प्रकृति और स्वभाच दिंदी के राजाश्रित कवि प्रायः अपना श्रोर श्रपने श्राश्रयदाताओं फ। कुछ परिचय अपनी धुस्तकीं में दे दिया करते थे। पर भक्त कवि इसकी आवश्यकता नहीं चमभते ये । छणसीदाउजी ने भी अपना कुछ बचात कहीं नहीं लिखा । अपने जीवनबृच फा जो फिंचित्‌ श्राभास उन्होंने फवितावली श्रोर विनय पत्निका में दिया है बह केवल अपनी दीनता दिखाने के लिये। किसी किसी ग्रंथ का समय भी उन्होंने लिख दिया दे। उनके जीवन ६ के सनघ में लोगों फी जिशासा यों ही रद्द जाती है। दूसरे ग्र्थों श्ञोर $७ रिचदतिर्यो से जो ॐ पता चलता है उसी पर संतोष करना पड़ता हैं। उनके जीननदप-संवधी दो प्रथ कटे जाते ই (१) बाता वेनीमाथवदास का -गोसाईचरितः, ( २) रघुनरदासजी का प्ठुसवीचरितः। पहला अथ- अथवा उसका संछित रूप नवलकिशोर प्रेस से प्रकाशित “(राम-चरित-मानस? के एक संस्करण के साथ छुप जुका है। पर उसमें लिखी अधिकतर वारते निश्चित ऐतिहासिक तथ्यों के विरुद्ध पढ़ती हैँ | दूधरा ग्रथ कदी पूरा प्रकाशित नदीं हु है। हमारी समझ में ये दोनों रूफ गोस्वामी ली के भहुत पीछे श्रुति परपरा के श्राघार पर लिखी गई हैं। इनमें এ্এক্ষা




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