मनन माला | Mann Mala

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Mann Mala by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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হুহাঁল दो! १५ सरकार ! मैं तुम्हारे लिये परम व्याकुल हूँ। आनन्दधन | प्रेम- छुधा बरसाओ और तुरन्त रूपमाघुरीकी छावण्यता दिखलाओ | अब विलम्ब न करो ! कृपाकी भीख डाल दो झोलीमें और छुढ़कने दो इस शरणागतको अपने चारु चरणोमें ! माधव अव न अधिकः तरसेये । जेसी करत सदासे आये वही दया दरसैये ॥ मानि लेहु हम कूर कुढंगी कपटी इटिर गंवार केसे असरन-सरन कहे तुम जनके तारनहार ।) आरत तुम्हें पुकारत छिन-छिन सुनत न त्रिथुबनराई । अँगुरी ढारि कानमें बेठे धरि ऐसी निठ॒राई॥ नाथ ! अब तो तुम्हारा यह असह्य दारुण वियोग नहीं सहा जाता । षिरहागनिकी ज्वाखसे देह दग्ध होता जाता है । इस जल्न- को मिठानेवाली ओषधि तो तुम्हारे दर्शनोंमें ही है | बस, एक बार मृतक-जियावनि-दृष्टिसे मेरी ओर निहारो और इस সঙ্নভিন विराप्निको बुझा दो | नहीं तो वह समय शीघ्र आनेवाल् है, जव कि यह प्राण-पखेर उड़ जायेंगे थाकी गति अंगनुकी मति परि गई मन्द; खि श्चौधरी-सी हके देह रामी पियरान । वाव्री-सी बुद्धि भई हसी काद्‌ छीनि रई, सुखके समाज मित तित लागे दूर जान ॥




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