सिक्ख - मुग़ल सम्बन्धो का एतिहासिक विश्लेषण (1605-1716 तक ) | Sikkh-Mugal Sambandho Ka Etihas Vishleshan (1605-1716 Tak)

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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রী पर निर्भरथी 1 हिन्दू समाज का गौण अंग समझे जाते थे । जनसंख्या की दृष्टि से वे मुस्लिमों से अधिक थ । हिन्दू-समाज प्राचीन काल से ही चार वर्णो- ब्राहमणः, क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र में विभाजित था । इस्लाम की बाढ़ से हिन्दू समाज ने स्वयं को सुरक्षित रखने की दृष्टि से अपने आपको छोटी-छोटी जातियों तथा उपजातियों में बांट लिया | इसका कारण यह था कि मुसलमान लोग अपने धर्म का प्रचार करने के लिए इस देश में आये थे और वे हिन्दुओं में घुल-मिल जाने के लिए कदापि उद्धृत न थे, वरन्‌ वे अपना अलग अस्तित्व बनाये रखने के लिए दृढ़-संकल्प थे | ऐसी स्थिति में अपनी सुरक्षा के लिए हिन्दुओं ने अपनी जाति प्रथा के बन्धन को अत्यन्त कठोर बना दिया । उन्होंने मुसलमानों को मलेच्छ के नाम से पुकारा और उन्हें अस्पृश्य बतलाया । अपनी सभ्यता तथा संस्कृति की सुरक्षा काउन्हें यही एक उपाय दिखाई दिया और इसी को उन्होने अपना अवलम्ब बना लिया । सामाजिक रूप से मुस्लिम हिन्दुओं को घणा की दृष्टि से देखते थे । हिन्दू अपनी स्त्रियं के सतीत्व की रक्षा के लिए उन्हें बाहर नहीं निकलने देते थे > परिणामस्वरूप हिन्दू समाज मे पर्दा-प्रथा, सतीप्रथा, बाल-विवाह ओर कन्या-वध आदि कुरीतियों का प्रचलन हो गया | हिन्दू स्वतंत्र रूप से अपने धर्म का आचरण नही कर सकते थे । उन्हे हिन्दू होने के कारण मुस्लिम शासकों को कर के रूप मे जजिया देना पड़ता था । इसके अतिरिक्त भय तथा लोभ से त्रस्त कर उन्हे धर्म परिवर्तन के लिए भी प्रेरित किया जाता था 1” ` ` मुस्लिम आक्रान्ताओं के पंजाब में प्रवेश के उपरान्त यहाँ के लोगों का जनजीवन अत्यधिक प्रभावित हुआ । मुसलमानों का राज्य धर्म-राज्य' था और साम्राज्य की स्थापना के... साथ-साथ इस्लाम का प्रचार और प्रसार करना उनका दायित्व था | इसी कारण बहुसंख्यक गैर-मुसलमानों को धर्म-परिवर्तन के लिए बाध्य किया गया था । मुस्लिम सरकार का शिकंजा पंजाब में अधिक मजबूत था और इसी कारण पंजाब में धर्म-परिवर्तन की लहर पूरी शक्ति के साथ चलाई गयी ।* निम्न श्रेणी के लोगों ने इस्लाम को रवीकार करना शुरू कर 27. के0एम0 अशरफ, लाइफ एण्ड कंडीशन आव द पीपुल आँव हिन्दुस्तान, पृ0-- 70 28... पंजाबी कहावत-अन्दर बैठी लक्ख दी, बाहर गई कक्‍्स दी | 29. गोविन्द सिंह मानसुखानी, दि कुविंटिसेंस ऑव सिक्‍्खीज्म, पृ0- 17 30. आईएबी0 वैनजी. एवोल्यूशन ओव द खालसा. पृ-43




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