अन्योक्ति कल्पद्रुम | Anyokti Kalpdrum

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Anyokti Kalpdrum by रामदास गौड़ - Ramdas Gaud

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[९ 4 अन्योक्तिकहपटमका पिगल अपने अर्थते लोकोत्तर आनन्द देनेवाले और रसको प्रकट करनेवाले वाक्य या वाक्योको काव्य कहते हें । शब्दयोजना भौर वाक्यव्रिन्यासकी दष्टिसे कास्य गद्य श्रौर पद्य, श्रौर गद्य पद्य मिश्रित तीन प्रकारके इए । ्नन्योक्तिकल्पद्रम पद्म काव्य है। इसमें पांच प्रकार के छुन्दोंका प्रयोग हुआ है । उन छम्दोंके लक्षण यहां देते हैं । दोहा--साधास्ण लक्षण यही है कि पहले और तीसरे चरणणोंमें तेरह तेरह मात्राएँ हों, दूसरे भौर चौथे चरणो रयारह ग्यारह सात्राएँ हों और अन्त्याजुप्रास हों। कुंडलियाझी आदिसें दोहा और दोहेके अन्तिम चरणको दोहराता हुआ रोला उन्द होता है। रोला छन्द॒का दीक उलठा लक्षण है कि उसके प्रत्येक चरणमें पहली ग्यारह मात्राओंपर यत्ति हो, फिर तेरह मात्राओंपर चरणान्त । यही सोरठाके पहले दूसरे पदोंके लक्षण हुए जो दोहाके उलटनेसे ही वन जाता है | इसलिये रोला श्नौर सोर दोनोंके एक ही लक्षण हो गये, सोरठेका पदान्त रोलेका यत्यन्त हो गया । अ्रतः पढनेमें दोनोंमें कोई अन्तर न होना चाहिये । परन्तु अन्तरके लिये सोरण और रोला दोनों गवाह हैं । अतः दोहा और रोला छुन्दोंकी गति निश्चित होनी चाहिये। इसपर अधिक विस्तार न करके दोहेके लक्ष पर ग्वाल कविका रचा निम्नलिखित दोहा दे देना ही হল ঘহ্দীঘ জলন্ত ই । दोदा “पटकल चौकल जगन चिलु पुनि इक कल फिर दोइ, पुनि षट, चोदक इमि दुदल दोहा सगती होई । दोहेमें ६+४--१ + २७०१३ मात्राओंके पहले और तीसरे चरण और




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