आदमी का ज़हर | Aadmi Ka Jahar

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Aadmi Ka Jahar by लक्षमीकान्त वर्मा - Lakshmikant Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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डॉ० अदारकर कामेइवर ् डॉक्टर साहब कहिए खैरियत तो है ? उफ आप तो काफी भीग गये है । कहिए । सयोजकजी गायब है न ? में पहलेसे जानता था ।. पशु-रक्षिणी-समितिका जनाज़ा दफनाने गये होगे हजरत | अगर आप लोग भी तैयार हो तो यह किस्सा ही खत्म कर दिया जाये । टेलीफोन काट दीजिए । फाइल्स उठा ले जाइए । काम करना है तो किसी दूसरेके हाथमे दीजिए । झरन-जैसोसे कुछ नहीं हो सकता । मेरा खयाल है डॉ० अदारकर । डॉ० अदारकर आपका खयाल-ही-खयाल है कामेइवरजी में कहता हूँ डॉ० पार चक्की नरेन्द्र डॉ० झदारकर ३४ दारन - शरन निहायत निकम्मा आदमी है जो भादमी चौबीस घण्टे यही कहता रहता है- बीबी बीमार है बच्चे बीमार है पैसे नही है तबीयत ठीक नही है उसके बूतेका यह सब काम नही है । वह निकम्मा रहा हैं और रहेगा । ऐसा क्यों कहते है डॉक्टर साहब । अपनी तकलीफ आदमी अपनों ही-से तो कहता हैं हम सब भी तो एक परिवारके समान है । देखिए साहब यह परिवार-वरिवारवाली बात आप अपने ही तक रखिए यही तो सारे दोषका कारण हैं । हाँ जी नरेन्द्रजी बिलकुल ठीक कहते है । अभी उस दिन शरन मेरे पास आया था बोला बीस रुपयेकी सख्त ज़रूरत है । एक हफ्तेमे दे दूँगा । मुझे भी तरस सादमीका ज़हर




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