नयी कविता के प्रतिमान | Nai Kavita Ke Pratiman

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Nai Kavita Ke Pratiman by Lakshmikant Verma

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about लक्षमीकान्त वर्मा - Lakshmikant Verma

Add Infomation AboutLakshmikant Verma

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
् | | साक्कशक एतिहासिक पृष्ठ यूमि नयी कविता की पृष्ठभूमि में जिन विशाल बौद्धिक सांस्कृतिक श्रौर सामाजिक अ्रन्तंद्न्द्वों, संघर्षों एवं चेतना-शक्तियों का योग रहा है उनकी व्याख्या किये बिना आ्ाज की नवीनतम प्रवृत्तियों की व्याख्या करना कठिन ही नहीं असंभव भी है । गत दो शतकों का साहित्य तो हमारी राजनीतिक श्रौर सामाजिक उथल-पुथल का ही प्रतिरूप हू । इसके पूर्व का साहित्य भी उस बौद्धिक जागरण से विकसित हुआ है जिस में पुनरुत्थान, नवीन संगठन, नये दृष्टिकोण श्रौर नयी योजनाशों के स्वप्न देखे गये थे भर जिन को सत्य करने के लिए कई पीढ़ियों ने श्रपने बल,” टू. साहस श्रौर श्रनुभूति का योग दिया है । यही कारण है कि श्राज के श्राधुनिकतम साहित्य से लेकर पिछले पांच झतकों के साहित्य में वे सभी तत्त्व मिलते हैं जिन में श्रद्धंशताब्दी के मानसिक श्रौर सांस्कृतिक प्रयोगों और कुण्ठाओ्ं की जागृत मी अभिव्यक्ति वर्तमान हैं । इन सब के माध्यम से ही झ्राज की काव्य-प्रवृत्तियों गन ग्रौर कला की मान्यताओं का सम्पूर्ण श्रध्ययन प्रस्तुत किया जा सकता है । देश, ......... “| समाज शभ्रौर व्यक्ति की पृथक्‌-पृथक्‌ समस्याएँ पृथक्‌-पृथक्‌ रूप में व्यक्त हुई हैं का ं ग्रौर इन सब का मिश्चित प्रभाव हमारे साहित्य पर एक विचित्र रूप में पड़ा है । एक श्रोर यदि भारत-भारती के गीत हैं तो दूसरी शभ्रोर बंगला-साहित्य से प्रभावित एक नयी झैली श्रौर शिल्प हूँ जिसमें रहस्यवाद है, छायावाद का स्वतन्त्र श्रस्तित्व है, नयी शब्द-योजना झऔर नया छन्द-विन्यास है । एक ओर पुनरुत्थान _____._____._......__्सससलूद्लमरा ... पाप था द




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now