पाठ - सम्पादन के सिद्धान्त | Paat Sampadan Ke Siddhant
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
424
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(३५४)
से उस के चित्त मे स्थित राग, मोह या आसक्ति दूर हो जाएगी और
ओर फिर कोई भी प्रसंग उसे दु खी नदीं वना सकेगा ।
स्मरण रखता चाहए कि जव तक सानम मोह् श्रौर आसक्ति का
घर वना हुश्रा दै, तब तक चित्त की चचलता नदीं मिट सकती श्रौर
जव तक चिन्त कौ चंचलता नही मिटती, तब तक किसी भी स्थिति मे
निराकुलता और शान्ति प्राप्त नहीं हा। सकती । इस का प्रधान ओर
एक मात्र कारण यह है कि ससार के किसी भी पदाथ मे शान्ति
पहुँचाने की शक्ति नहीं है। शान्ति, छृष्ति, संतोष और सुख ता हमारे
ही अन्त'करण की वृत्तियां हैं. ।
वैराग्य के उत्पन्न होने पर ही मनुष्य को सच्चा सुख और
वास्तविक शान्ति प्राप्त हों सकती है । तएव वैराग्य ही सुख का
साधन दै, वैराग्य ही शान्ति का खरोत है, वैराग्य ही आनन्द का जनक
हे, वेराग्य ही सब दु खों से रक्षा करने वाला है और बैराग्य के अभाव
मे किसी भी उपाय से इन की उपलब्धि होना सभव नहीं दै ।
बैराग्य भावना का विकास करने के लिये यह आवश्यक नहीं
कि हठातू बाह्य पदर्थों का परित्याग किया जाए । जैसा कि प्रारभ में कहा
गया था, वैराग्य तो भध्यस्थ भाव में हे । आप जिन पदार्थों का सेवन
करते हैं, उन्हें. अनासक्त भाव से अगर सेवन करेंगे तो उन का सेवन
करने पर भी वैराम्य की आराधना कर सकेंगे । एक मनुष्य
आसक्तिपूबक चने चबाता है और दूसरा अनासक्त भाव से सिट्टान्न
खाता है? अब आप ही विचार कीजिए ऊफ़ि दोनों में कौन रागी है और
कौन विरागी है ? इसी प्रकार एक मनुष्य किसी विषय का सेवन तो
नहीं करता किन्तु रात-दिन सेवन करने की भावना किया करता है, तो
वह क्या त्यागी या बैरागी कहा जा सकता ? नहीं । जब तक चित्त
में विषयो का चस्का लगा रहता दै, तव तक वास्तविक वैराग्य का उद्य
नहीं हो सकता | वास्तविक वैराग्य तो तभी उत्पन्न होना रै जव
विपयों की वासना अन्त करण से दुर दो जाती है। श्रतए्व वैराग्य
फ लिए ददय सें समभाव को जगना चाहिए ।
মল জল पूरी तरह सघ जाता है, अर्ात् जब कोई भी पदार्थ
अन्त करण में विकार उत्पन्न करने मे समर्थं नहीं होता, तव उतनी
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