नवयुग की मांग | Navyug Ki Mang
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
71
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about धीरेन्द्र मजूमदार - Dheerendra Majoomdar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१६ नवयुग की माँग
लालाजी ने देखा कि एक वच्चा गायव । परेशान होकर उन्होंने
जेब से कागज निकालकर आँकड़ों को देखा और कहा: छेखा-
जोखा थाहे । लड़का बड़ल काहे ?
उसी तरह हमारे पंडितों के औसत आँकड़ों के चक्कर
में देश का छोटा वच्चा डूब मर रहा है । दुर्भाग्य स इस देश में
पचासी प्रतिशत छोटे बच्चे हे, जो भूख से तडप रहे हूँ, डूब रह
है, मर रहे है ।
छालाजी का बच्चा इसलिए ड्वा था कि उन्होंने बुनियाद
में ही गलती की थी । वह औसत हिसाब के फेर मे पड़ गय।
अगर वे नदी की मझधार की गहराई को ही नापते और केवल
छोटे बच्चे की >चाई को देखते तो उनका बच्चा न डूबता ।
वह नदी पार करने के लिए दूसरे उपाय खोजते !
उसी तरह देश वे. योजनाकारों ने देश की समस्याओं की
मझथार को नहीं नापा और न ही छोटे बच्चें की शवित का
अन्दाज लगाया। देश की समस्याओं की मझधार है पेट की
समस्या और छोटे बच्चे को पास पेजी की शवित नहीं हैं, श्रम की
धारित हैं । उनका विचार न करके समाजश्ञास्त्री नेताओं ने
पुजीमूलवः बड्ी-यड़ी योजनाओं को उठा छिया, उन्हें विदेशी
सन्दूक ये सहारे संयोजित किया और देशभर में फँली हुई जन-
হাকিল या स्याद न कर एक बृहद् नौकरथाही वा जाल विछाकर
उसमे माध्यम से লুল में से निकाछ-निकाछकर गात
बीटने छगे । फल्स्यसूप देश की जनता पूँजीवाद से शोपिंत
और सोौफरदाही में पददलित होफर बरी तरह छटपटा रही
User Reviews
No Reviews | Add Yours...