अमोल सूक्ति रत्नाकर भाग 1 | Amol - Sukti Ratnakar Bhag 1

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Amol - Sukti Ratnakar Bhag 1 by कल्याण ऋषी - Kalyan Rishi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १५ ) को-सशक्त एवं सामथ्यवांन्‌ बना सकते हैं, “परन्तु सुभापित-रत्न आत्मा की खुराक हैं । उनसे आत्मिक तृप्ति होती है। वे आत्मा में अपूर्य उत्साह और अग्रतिहत वीये-शक्ति उत्पन्न कर देते हैं, जल और अन्न तो कभी-कभी हानि भी उत्पन्न कर देते है, विसूचिक्रा मादि व्याधिर्या मी उल्के कारण उभर आती है, पर सुभापित बाणी किसी भी स्थिति में हामि उत्पन्न नही कर सकती । वह एकान्त द्यानन्दमम होती है । न्न ओर जल का सेवन जिया जाता है तो कुछ समय के लिए तृप्ति-लाभ होता है; और फिर ज्यो की त्यों भूख और प्यास सताने लगती है । परन्तु सुभापित वचन को प्रभाव तो ऐसा अदूर्ुत होता है कि समग्र जीवन से परिवत्तेन कर देता है 1 इतिदास इस कथन की सत्यता के प्रमाणो से भरा हया है । हम देखते हैं कि सुभापित के प्रभाव से कदर्यो का जीवन दी वदल गया } करयो ते सुभापितवाणी से प्रभावित होकर अपने जीवन से ऐसे-ऐसे कार्य कर दिखाए कि वे इतिहास के पृष्ठो में अमर हो गए। भगवान्‌ अरिप्रनेमि के लघुआता হশ্রদিজি কা ভু্ান্ন জল साहित्य में प्रसिड् है । भ० अरिएनेसि के हरा परित्यक्ता भगवती राजीसती को स्थनेमि अपनाना चाहते थे। सगर राजीसती ने अविवाहित रहकर तपोमय जीवनयापनत करना ही निश्चित किया था। रथनेसि को निराशा हुई और उस निराशा के फलस्वरूप वद्‌ भी साघु वन गये । साघु वन जाने पर सी राजीसती-विपयक वासना उनके अन्तःकरण से दूर न हुईं। उन्तके हृदय में राजीमती को पाने की लालसा अव्यक्त रूप से विद्यमात ही रह गदे + एक




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