शरत - साहित्य | Sharat - sahitya

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Sharat - sahitya  by हेमचन्द्र मोदी - Hemchandra Modi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कान्त ५ अपने हाथम्‌ रक्ली । इसके बाद, वह अपनी दोनो हथेलियोकी एक विचित्र ग्रकारमे जुटाकर, उस सिगरेटको चिलम बनाकर जोरसे खींचने लगा । बापरे,-- केसे जोरसे उसने दम खीचा कि एक दी दममे मिगरेटकी आग सिरेसे चलकर नीच उतर आई ! लेग चारों तरफ खड़े थे---मैं बहुत ही डर गया । मेने डरते हुए पूछा. “ पीते हुए. यदि कोई देख ले तो १ ”” / देख ले ता क्या ? सभी जानते ই । यह्‌ २.दकर स्वच्छन्दतासे सिगरेट पीता हुआ वह चौराहपर मुढडा और मेरे मनपर एक गहरी छाप लगाकर, एक आरको चल दिया। आज उस दिनकी बहुत-सी बाते याद आती हैं । सिर्फ इतना ही याद नहीं आता, कि उस अद्भुत बालकके प्रति, उस दिन मुझे प्रेम उत्पन्न हुआ था, अथबा यो खुले आम मांग और तमाख्‌ पीनेके कारण, मन ही मन घृणा! इस घटनाके बाद करीब एक महीना बीत गया। एक दिन णात्रि जितनी उष्ण थी उतनी ही अधेरी मी थी। कही वृक्षकी एक पत्ती तक न हिल्ती थी | सब्र छतपर साये हुए थे । १२ बज चुके थे, परन्तु किसीकी भी ऑँखोंमें नींदका नाम न था | एकाएक बॉसुरौका बहुत मधुर स्वर कानोमे आने छगा। साधारण “ रामप्रसादी सर था | कितनी ही दे 6। सुन चुका था, किंतु बासुरी नम प्रकार मुग्ध कर मकती दै, यह म न जानता था। हमारे मकानके दक्षिण- पूवक कानेमे एक बडा भारी आम ओर कटइलका बाग था। कई हिस्स- दारोंकी सम्पत्ति होनेके कारण कोई उसकी “गज-खबर नहीं लेता था, इस लिए पूरा बाग निश्रेड जगलके रूपमे परिणत हो गया था। यायजेल्लेके आन-जानेसे उस बागके ब्रीचभसे केवर एक पतली-सी पगडडी बन गह्‌ थी । णसा मादरम हुआ कि मानो उसी वन-पथसे बॉसुरीका सुर क्रमश निकटवर्ती होता हुआ आ रहा है। बुआ उठकर बेठ गई और अपने बडे लड़केको उद्देश कर बोली, “ हूँ रें नवीन, यह बॉँसुरी राय-परिवारका इन्द्र ही बजा रहा है न? ” तब मैने समझा कि इस वशीधारीकों ये सभी चीन्हते हैं । बड़े भइयाने कहा, “ उस हतभागेको छाइकर ऐसी वसी दूसरा कोन बजायगा ओर, उस जगलम, ऐसा कौन है जो हूँकेगा £? ४ बोलता क्‍या है रे ? वह क्‍या युसाईके बगीचेमेसे आ रहा है ! ” बड़े भइया बोले, “ हों।




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