हिन्दी के प्रगतिवादी काव्य में प्रकृति - चित्रण का आलोचनात्मक अध्ययन | Zzzt-1459 Hindi Ke Pragitiwadi Kavya Me Pakrit Chitran

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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क ०%* मता न्तरोः में विभाजित था । उसमे वुप्रथाओं ने प्रवेश कर लिया का आर वह एक विजित राष्ट्र के समाज की तरह निराश औरर संकटपूर्ण उस मुस्लिम जीवन-यापन कर रा श । धं परिरिवर्तन का जौ भ शासनकाल में था, वह भी अब एक नवीन रूप में उसके समक्षे उपस्थित हो गया' था| |। राजाः राममौहन राय सदै समाज संधारक का जगशिवि- 1 ^} ध ৪৮ 94 [910 2] --1” ८०] न = 4৫ -শ শান इसके पूवं वे भारतीय त्तमाज में प्रचलित बाल- न्विकवाद, घती-प्रया तेघ कुप्रथाओं को दूर करना चाहते के, किन्तु वे इत कार्य में शात्तन को सहायता आकाथक सान्ते य । विविध मत- मतान्तरौ के कारण देले य पक्ता का अभाव था । राजा राममोहन কাত তি পা] तमभेद को दरकर देश को एकता' के सन्र भें आबदकरने के उददेश्य ते ढो ब्रम समाज कौ स्थापना की थी | सच्न-18 55 उनको मृत्यु के पश्चाद्व केश्क्चन्द घैन ने ब्रहम समाने का नेतृत्व ग्रहणै | उनके प्रयत्न ते इस ममाणज का प्रभाव बंगाल को स्ीमा को ফিরি 8 { त ५ ह ॥ 31 এ ই পদ न पापा চি. 7 কহ त्कः ध गय লহ उत्तर पंजाब तथा पराशक मैं ह्‌ र~ तक न्या त इ ¢ स | ০28 1 अजौ লাগাল ने चनू-1842 में जाल জিনাত रोकने के लए कानून व था जविधवा' विवाह भी कानून-सम्मत घोषित दो गया | संचू-1867 में महाराष्ट्र में प्राथना समाज की 8২৮ গেট আসান যন पिः हमेकः शित छिरः सहीति कषयति स्यापना इड थी, चित्के नदा महाराष्ट्र प्रदेश में समाज सुधार का महत्वपूर्ण कार्य हुआ | इस काल के वुष्ुप्त भारतीय समाज कौ जागृति का सन्देश देने वाले महापुरुषी' में स्वामी दयानन्द सरस्वती, रा मकुृष्ण




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