हिन्दी के प्रगतिवादी काव्य में प्रकृति - चित्रण का आलोचनात्मक अध्ययन | Zzzt-1459 Hindi Ke Pragitiwadi Kavya Me Pakrit Chitran
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
138 MB
कुल पष्ठ :
334
श्रेणी :
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मता न्तरोः में विभाजित था । उसमे वुप्रथाओं ने प्रवेश कर लिया का
आर वह एक विजित राष्ट्र के समाज की तरह निराश औरर संकटपूर्ण
उस मुस्लिम
जीवन-यापन कर रा श । धं परिरिवर्तन का जौ भ
शासनकाल में था, वह भी अब एक नवीन रूप में उसके समक्षे उपस्थित
हो गया' था| |। राजाः राममौहन राय सदै समाज संधारक का जगशिवि-
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न्विकवाद, घती-प्रया तेघ कुप्रथाओं को दूर करना चाहते के, किन्तु वे
इत कार्य में शात्तन को सहायता आकाथक सान्ते य । विविध मत-
मतान्तरौ के कारण देले य पक्ता का अभाव था । राजा राममोहन
কাত তি পা] तमभेद को दरकर देश को एकता' के सन्र भें आबदकरने
के उददेश्य ते ढो ब्रम समाज कौ स्थापना की थी | सच्न-18 55
उनको मृत्यु के पश्चाद्व केश्क्चन्द घैन ने ब्रहम समाने का नेतृत्व ग्रहणै
| उनके प्रयत्न ते इस ममाणज का प्रभाव बंगाल को स्ीमा को
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1 अजौ লাগাল ने चनू-1842 में जाल জিনাত रोकने के
लए कानून व था जविधवा' विवाह भी कानून-सम्मत घोषित
दो गया |
संचू-1867 में महाराष्ट्र में प्राथना समाज की
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स्यापना इड थी, चित्के नदा महाराष्ट्र प्रदेश में समाज सुधार का
महत्वपूर्ण कार्य हुआ | इस काल के वुष्ुप्त भारतीय समाज कौ जागृति
का सन्देश देने वाले महापुरुषी' में स्वामी दयानन्द सरस्वती, रा मकुृष्ण
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