बौद्ध और जैन आगमों में नारी - जीवन | Bauddh Aur Jain Aagamon Men Nari - Jeevan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
109 MB
कुल पष्ठ :
287
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १७ )
अवरोध सा उत्पन्न हो गधा । इसके दो प्रमुख कारण थे--पालि-प्राकृत साहित्य
मे रुचि रखने वाले सुयोग्य निर्देशक का अभाव तथा विषय का व्यापकत्व,
जिसका अनुभव मुझे सामग्रो-संकलन के अवसर पर हुआ । मुझे ऐसा प्रतीत লীন
लगा कि पज्य पण्डितजी के अभाव में मेरा कार्य भी अधूरा ही रह जायेगा
किन्तु काशी हिन्दू विश्वविद्यालय मे संस्कृत-पालि विभाग के अध्यक्ष মুন
डा० सिद्धेश्वर भद्राचार्यजो को कृपा से मैं समस्त बाधाओं को पार कर
अपने लक्ष्यकों प्राप्त करनेमें सफल हो सका। पृज्य डा० भट्दाचार्यजी अपने
सुयोग्य निर्देशन के लिए तो विख्यात हैं ही, साथ हो आपमें अपने शिष्य-बर्ग को
कठिनाइयों को समझ कर उन्हें दूर करने एवं उनमें आत्मविश्वास जाग्रत करने
की भी अद्भुत क्षमता है। जब मैंने अपने विषय को व्यापकता से उत्पन्न परि-
स्थिति उनके सम्मुख रखी तो उन्होंने उसी विषय के किसी अंश पर शोध-
कार्य करने की सलाह दो । उनकी आज्ञानुसार मेंने बौद्ध एवं जैन आगमों में
नारी-जीवन पर अपना कार्य सम्पन्न किया ।
आभार पदशेन--
बोद्ध ओर जैन आगमो पर कार्य करने को मूल प्रेरणा देने वाले पृज्य स्व०
महापण्डित राहुल सांकृत्यायनजी को याद ऐसे समय बर-बस भा जाती है ।
उनका मात्र ७ दिनों का साब्निध्य मुझे नितनवोन प्रेरणा देता रहता है আজ
में उनकी पुण्य-स्मृति में श्रद्धा से नतमस्तक हूँ । मुझे अपने शोध-कार्य में पज्य
डा० सिद्धववर भट्टाचायजी का बहुमूल्य निर्देशन तो प्राप्त हुआ हो है, साथ ही
मेरे आज तक के व्यक्तित्व के निर्माण में उनका মইন वस्दहस्त रहा है ।
एतदर्थ में उनका विरक्रणी रहेगा । पावनाय विद्याश्षम शोध संस्थान के
अध्यक्ष आदरणीय डा० मोहनलाल जी मेहता के प्रति भी अपनो कृतज्ञता व्यक्त
करता हूँ जिनसे मेने हर समय हर सम्भव सहायता प्राप्त की । आदरणीय बाबू
नन््दकिशोर जो वकोल का भी हुदय से आभारी हूँ जो मुझे शोष-कार्य में आगे
बढ़ते रहने की ही प्रेरणा देते रहते है ।
आदरणीय पं० दलूसुखजी मालवणिया, (संचालक, छा० द० विद्या संस्कति
मन्दिर अहमदाबाद ) के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करता है जिन्होंने इस प्रबन्ध का
परीक्षण कर अपने बहुमूल्य सुझाव दिये जिनके आधार पर मैंने प्रस्तत ग्रन्थ में
आवश्यक संशोधन किये हैं। सिद्धास्ताचार्य पं० फलचन्द्रजो, स्रिद्धान्ताचार्य पं०
केलादाचन्द्रजी एवं श्री विश्वनाथ मुखर्जी से भी प्रबन्ध के लेखन काल में पर्याप्त
प्ररणा मिली। एतदर्थ उनका भी आभारों है। श्रद्धय गुरु श्री भनोमदर्शी-
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