जर्मनी का विकास भाग 2 | Jarmani Ka Vikas Bhag 2
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
36 MB
कुल पष्ठ :
209
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १४ )
छोग विदेश जाते हैं उनमें बहुत से छोग खेती का ही व्यव-
साय करनेवाले द्ोते हैं। वे छोग खती की ओर जाँख उठा
कर भी देखना नदीं चाहत ¦ उनकी रुचि अब उद्योग धथ
की ओर है । कुछ थोड़े छोग निज के तौर पर नोकरी भी
कर छेते हें परंतु अधिक संख्या उन्हीं छोगों को है जो व्यव-
खाय वाणिज्य संबंधी कामों में ही अपन को छगा कर अपने
छिये जीविका पेंदा करते हैं ।
आरभिक शिक्षा की पाठशालां क शिक्षकों की
सहायता से पूर्वी प्रशिया के संबंध में सरकार ने जो छारेवाई
की है उच्च सर स्पष्ट दिखाई पड़ने छगा है कि करीब करीब
२४०० कुटुम्ब लन १९०५-०६ में इस प्रांत को छोड़ कर बाहर
चक्े गए | इनसें ले कुछ तो जमन देश छोड़ कर अन्य देशों
में बछे गए ओर बाकी सब जमेनी के पश्िचमी भाग में जा
कर रहने छगे । विदेश जाने की यह उत्कुठा जैसी युवा पुरुषों
में दिखाई पड़ती दे बेखी ह्वी बारिकाओं में भी देखी जाती.
है! ये कन्याएँ कारखानों में मजदूरी का काम करती हैं या
किसी के यहां जाकर नोकरी करती हैं। बहुत सी तो सीसे
पिरोने, अथवा झाइ्ू बुहारी छगाने या कपड़ा घोन का छाम्त
करती हैं। अर कोइ कोइ तो दूकानों पर सादा बेचने की
नाकरी भी स्वीकार कर लती है | इन प्रांतों से समुद्र पार
विदेश जानेवाछे छोगों की संख्या भी कुछ कम नहीं है
ओोगद्योगिक प्रांतों में जाने की अपक्षा यह संख्या बहुत
अधिक है | द
गांवों ओर किसानों की आबादी दिलों दिन क्यों कम
User Reviews
No Reviews | Add Yours...