तरत्नाकर पच्चीशी | Ratnakar Pachhishi

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मुनि मंगलसागर - Muni Mangalsagar

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रत्नाकर सूरी - Ratnakar Suri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दैत्यवं० ] ९ [ विधि पूच्छाकारेण संदिसद भगवन्‌ ? चेत्यवंदन करूं, इच्छे! ॥ चैस्यवंदन ॥ जय | जय ! नामिनरिंद नंद, सिद्धाचल मंडण । जय ! जय ! प्रथम जिणंदचंद, भवदुःख विहंडण ॥ जय 1 जय 1 साधु सुरिंद इंद, बंदिआ परमेसर । जय | जय ! जगदानंदकंद, श्री ऋषभ जिणेसर ॥ अमृत सम जिनधर्मनो ए, दायक जगमें जाण । तुज पद पैक प्रीतधर निश्दिन नमत करपाण ॥ ॥ जं किंचि ॥ ज॑ किंदि नामतित्थं, सग्गे पायालि माणुसे लोए। জার जिणबियाई, ताईं सवाई बंदामि ॥ ॥ नमोत्थुण ॥ नमोत्युणं अरिदंताणं, मगवंताणं। आइगराणं तित्थ- यराणं, सयंसंबुद्धाण ॥ पुरिसुत्तमाणं, पुरिससीहाणं, पुरिसवर- ' पुंडरियाणं, पुरिसवर गंधहत्थीणं ॥ लोगुत्तमाणं, लोगनाहाणं, लोगद्ियाणं, छोगपईबा्णं छोगपोअगराणं | अभयदयाणं, चरुखुदयाणं, मग्गदयाणं, सरणदयाणं, बोहीदयाणं। धम्म- दयाएं धम्मदेसियाणं, धम्मनायगाणं, धम्मसारहीण, धम्म- पर-चाठरंत-चकबड्टीण | अप्पहिदयवरनाणदसणघराण, दिअ-




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