संस्कृत स्वयं - शिक्षक भाग - 2 | Sanskrit Swayam Shikshak Part-ii

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Sanskrit Swayam Shikshak Part-ii by श्रीपाद दामोदर सातवळेकर - Shripad Damodar Satwalekar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ड्िसाय मांग श्षे सर्वत्र दो की संख्या के लिए द्विवचन का ही प्रयोग करना भावदयक है । यह चात पाठकों को भ्रवर्य ध्यान में रखनी चाहिए । भ्रव सातों विभक्तियों तीनों वचनों में दाब्दों के रूप नीचे देते हैं । भ्रकारान्त पुल्लिजी देव शब्द के रूप एकबचन हिवघन बहुदचन प्रथमा १ देवः देवौ -- देवा ट्िंहीया २ देवमु देवो न देवानु शुप्तीया ६ देवेन दैबाम्याम्‌ देवेः तुर्यी ४ देवाय देवाम्यामू +- देवेम्य नल पंचमी. ५ देबादू देवाम्यामू न देबेम्य स्‍्त् पप्ठी ६ देवस्य देवयो ६ देवासाम्‌ सप्तमी ७ देवे देवयो 9६ देबेपु सम्बोपभ हे देव है देवी -- हि देवा इसी प्रकार सब भकारान्त पुल्लिजी शब्द के रुप होते हैं । पाठकों ने ध्यान से देखा होगा कि सिमक्सियों में कई रूप एक जेसे होते हैं । इस पाब्द में जो-जो रूप एक जैसे हूं उनके भागे कोप्ठ में एक-सा चिह्न किया है जैसे ना 2 े ८ थे चि्न हैं मो उक्त प्रकार के समान रूपों पर लगाए हैं । भ्रगर पाठक इन समान रूपों को ध्यान में रखेंगे तो कप्ठ करने का उनका परिध्म बच जाएगा । यह समान रूप-दौलो ध्यान में भाने के सिए काल दाब्द के रूप नीचे दिए जाते हूं भौर जो समान रूप हैं वहां कोई रूप मे देकर . चिज्ल-मात्र दिया गया है । कर एकवचन द्िबचम थहुबचम प्रथमा. ९१ काल कासी कासा सम्बोधन है कास कि कालो है काला दितीया २ कासम्‌ मी काला रे ली दे




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