पत्रावली | Patrawali

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Patrawali  by मैथिलीशरण गुप्त - Maithili Sharan Gupt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रतापसह का पत्र [ १५ | क्षुपा से बेटी का वह तड़पना में निरख के; न हे पृथ्वीराज ! स्थिर रह सका धय रख के। 'के आत्मा की भी सुध-बुध न हा ! रखक रही, क्षमा कीजे मेरी यह अबलता--केवल यही ॥ १६ | न सोचा मेनि हा! कि यह सव है दव-वटना; स्व-कत्तव्यों से है समुचित नहीं नेक हटना । विधाता जो देवे महण करना ही उचित दहे उप्ती की इच्छा में सतत शुभ है ओर हित है ॥ | १७ | कीं सोचा होता धृति सहित मँ ने यह तभी, न होता तो मेरा यह पतन्‌ श्राकरस्मिक कभी । सहारा देते जो तुम न मुझको सम्प्रति वहाँ, न जाने होता तो उस पतन का अन्त न कहाँ । [ १८ | तुम्हारो बातें है ध्वनित इस अन्तःकरण मे, पुनः आया मानों अखिलपति की में शरण में । यही आशोवांणी अब तुम मुझे; दो हृदय से, न छद. जीते जी यह व्रत किसी विज्न-भय से ॥ १९




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