उन्नीसवीं शताब्दी का अजमेर | Unnisavi Shatabdi Ka Ajmer
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
298
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१६घीं शताब्दी का झ्जमेर
डी
सन् १७३० मे गुजरात ने सरवुलंदखान ५४ के नेतृत्व में दिल्ली कौ श्रधीनता
म्रस्वीकार कर दी थी । इस परिस्थिति में मुगल सम्राट ने उसके विरुद्ध श्रभय्िह से
सहायता मांगी और यह वचन दिया कि उसे अजमेर और गुजरात का हाकिम वना
दिया जायेग्रा** । মহিন ने १७३१ में गुजरात को जीत कर वापस मुगल साम्रा-
ज्यका अधिकार स्थापित किया, परन्तु मुगल सम्राठ ने अजमेर, जयपुर के सवाई-
जयसिह** को भरतपुर के जाट शासक चुड़ामण को दवाने के उपलक्ष में उन्हें
प्रदान कर दिया। मुगल सम्राट के इस कदम ने राजपूताने के दो प्रमुख रबवाड़ों,
राठौड़ों और कछवाहों के वीच अजमेर के लिए संघ अवश्यम्भावी कर दिया ।
অন্ব १७४० में भिनाय और पीसांगन के राजाओं की मदद से अभयर्सिह
के भाई वखतसिह ने श्रजममेर के हाकिम को परास्त कर श्रजमेर पर राठौड़ों का
श्रधिकार पुनः स्थापित किया | फलस्वरूप जयपुर व जोधपुर के बीच अजमेर के
दक्षिण-पूवं मे & मील दुर गंगवाना नामक स्थान पर एक महत्वपूर्ण युद्ध ८ जूब
१७४१ को हुआ । मृद भर राठौड़ ने जयरसिह की विशाल सेनाको भारी पराजय
दी 1 जयर्सिह् को संधि करनी पड़ी । रारीडों को जयर्षिह् से सात परगने प्राप्त हुए
जिनमें श्रजमेर भी एक था५७ |
सवाई जयसिंह की मृत्यु के वाद उनके उत्तराधिकारी ईश्वरी सिंह भजमेर
पर पुनः अधिकार स्थापित करने को वहुत उत्सुक थे । उन्होने भ्रजमेर पर झ्राक्रमण
की तंयारी भी की परन्तु जयपुर के रायमल व जोधपुर के पुरोहित जगन्नाथ की
मध्यस्थता के कारण युद्ध टल गया । त्तव से लेकर सन १७५६ तक श्रजमेर पर
হাতীভী का शासन रहा 1
१८ वीं सदी का अंतिम मध्यवर्ती काल, जहां तक राजपूताने का प्रश्न है,
मराठों के भारी संख्या में घुसपैठ का समय था । राजपृतों के श्रांतरिक कलह से उन्हें
इनके मामलों में हस्तक्षेप का अवसर प्राप्त हुआा जो अंत में इस क्षेत्र में उनके श्राधि-
पत्य के रूप में परिणित हुआ । राजपुतों के इन आपसी संघर्षों में होल््कर और
सिधिया ने बहुधा एक दूसरे के विरुद्ध पक्षों की अलग अलग सहायता की। मेड़ता
के युद्ध में जयपुर के राजा ईश्वरीसिंह की सेना भर मराठों की मिलीजुली शक्ति
के श्रागे जोधपुर के राजा विजय सिह की पराजय ने एक लंवे समय के लिए ग्रनमेर
का भाग्य निरय कर दिया । सनु १७५६ से लेकर १७५८ तक श्रजमेर मराठे य
रामसिह के अधिकार में रहा । रामसंर, खरवा, भिनाय और मसूदा जयपुर नरेण
रामसिंह के और शेप भाग मराठों के पास रहा । छोटी मोटी घटनाएं इस बीच
अजमेर को मराठा आधिपत्त्य से मुक्त करने के लिए हुई परन्तु सन् १७६१ तक श्रजमेर
पर मराठों का श्राधिपत्य वना रहा ! सन १७६१ में मारवाड़ के भीमराज ने मराठा
सूवेदार अववरजंग से श्रजमेर छीन कर श्रपने छोटे भाई सिघवी घनराज को वहां का
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