नागरिकशास्त्र सिद्धान्त | Nagrikshastra Ke Sidhant

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Nagrikshastra Ke Sidhant by सत्यकेतु विद्यालंकार - SatyaKetu Vidyalankar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नामरिकज्ञास्‍्तत और उप्तका क्षेत्र १५ अपनी ল্গাধিক झ्ावश्यकताओं को पूरा करता है, किसी घामिक सम्प्रदाय का सदस्य होता है, ओर किसी राज्य का अगर होता है। इन सब समुदायों द्वारा भनुष्य का सामु> दापिक जीवन प्रकट होता है ! परिवार के श्रति, जाति व विरादरी के प्रति, धारमिक सम्प्रदाग्र के प्रति, कारखाने द दफ्तर आदि में काम करनेवाले प्रन्य लोगो के प्रति, अपने पडोत्त मे निवास करनेवाले मनुष्यो के प्रति, राज्य के प्रति, और समाज कै प्रतिं सत्ष्य के क्या वर्तेब्य है, और उनके साथ बरठते हुए उसे किस नीति का झनुसरण क्रना चाहिए--इन सब बाती पर नागरिक्मास्त्र भे विचार क्या जाता है। इस शास्त्र द्वारा उन सब राजनीतिक, झआाधिक, पारिवारिक, घामिक, सास्कृतिक और सामाजिक समस्याप्रो का अध्ययन किया जाता है, जिनके साथ मनुष्य के सामुदायिक जीवन का घतिष्ठ सम्दन्ध है । इस प्रकार नागरिकशास्त्र का क्षेत्र राजनीति झास्त्र की अपेक्षा भ्रधिक व्यापक ই । उसका सम्प्रस्ध मनुष्य के सम्पूर्ण सामुदायिक व सामाजिक जीवन के साथ है । साथ ही, वह केवल मनुष्यों के वर्तमान सामुदायिक जीवन पर ही प्रकाश वही डालता, अपिनु वह यह भी बताता है कि भूतकाल से मतनुष्यो के सामुदायिक जीवन का कया रूप था। किस प्रकार मनुष्य ने विविव प्रकार के समुदाय बनाकर अपने सामाजिक जीवन का विकास सुरू किया, और किस प्रकार घीरे-घीरे उनति रुरते हुए वहं वर्मन दया को पहुँचा है। भूतकाल के सामाजिक जीवन का अध्ययन करके हमे यह ज्ञात होता है, कि भनुष्य ने पुराने समय में जिव समुदायों का संगठन किया था, उनमे क्या गुणु व दोष थे । वर्तमान समय के समुदायों का अध्ययन करने से हम यह जाने सकते है, কি उनमे क्‍या कमियाँ हैं, और उनके क्या गुण-दोष है! इ ग्रध्ययन से हमे यह जानने मे सहायता मिलती है, कि मनुष्य को अपनी भावी उन्नति के लिए किस भार्ग का अनुसरण करता चाहिए 1 क्योकि मनुष्य समाज द्वारा ही अपनी उन्नति कर सकता है, अत इस अच्ययन का उसके हित, सुख व তত के लिये बहुत मद्दत्व है 1 नागरिकशास्त के क्षेत्र पर विचार करते हुए हमे यह भी घ्यानमे रखना चाहिए, कि ज्यो-ज्यो मानव-सभ्यता का विकास होता जाता है, इस शास्त्र का क्षेत्र भी प्रधिक विस्तृत होना जाता है । पुराने समय में जब छोटे छोटे राज्य গা কটি थे, मनुष्य का सामाजिक जीवन इन नगर-राज्यो मे ही केच्धित रहता था बाहरी दूतिया से उसका सम्बन्ध बहुत कम होता था। भारत में कोई नया धामिक ग्रल्दो- लगन शुरू हुआ या कोई नया ्राविच्कार हृश्रा, तौ उसका प्रसर फ्रास, जर्मनी भ्रादि दूरवर्ती देशो पर श्रधिक नह पडता या । पर विज्ञान की उन्नति के कारण अब मनुष्य ने देश और काल पर भदभुत विजय प्राप्त कर ली है रेल, तार, रेडियो, टलिफौन, हवाई जहाज आदि के आविष्कार ने विविध देशो की दूरो को बहुत कम कर दिया है । इसी कारण यदि कोरिया मे गृहयुद्ध ভু হী, योग्रा में राष्ट्रीय स्वाधीनता का भ




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