शरत साहित्य (देना-पावना) | Sharat Sahitya (Dena Pawna)

Sharat Sahitya (Dena Pawna) by शरतचंद्र - Sharatchandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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देना-पावना হই मेरा क्या कर सकता है, चरकर देख. । कदकर वह परिणामके भयसे हीन उन्मादिनीकी तरद आप दी तेजीसे गे बढ गई । रास्तेम दो-एक परिचित लोगोंसे साक्षात्‌ हुआ; किन्तु घोडशीने उधर देखा भी नहीं । चमींदारके रोग पीडे योरगु करते जा रहे हैं, इसका अथे गेवि- चालकों समझाकर बताना व्यर्थ है--केवलर इसी लिए नहीं, वल्कि किसीसे भी सहायताकी भिक्षा मौगकर इतने वड़े अपमानको अपने दी मुँदसे चारौ मौर कैला देनेको भी किसी तरद्‌ उसका जी नहीं चाहा-प्रद्नत्ति नहीं हुईं । जमीदारकी कचहरी अधिक दूर न थी। एककोड़ी सामने ही खड़ा मिला | देखते ही वह कह उठा--मैं नहीं जानता, में कुछ मी नहीं जानता । --सरदारनी, हुजूरके पास ले जाओ। यों कहकर शान्तिकुटीरकी ओर डुगलीसे इजारा करके घह चटपट कचहरीके भीतर घुस गया। इतनी देर बाद षोड़शी अपनी विपत्तिके गुरुत्वकी सम्पूर्ण उपलब्धि करके शकित हो उठी। कहाँ जाना होगा--यह समझकर भी उसने पूछा--मसुझे कहे जाना होगा १ उस आदमीने एककोड़ीकी दिखलाई हुई दिशाकी ओर बताकर कहा-- उधर चल | जाना ही होगा, तो मी षोड़शीने कह्य--मेरे पास तो रुपए नहीं हैं सरदार | हुजूरके पास ले जाकर तुम लोगोंको क्या राम होगा १ किन्तु सरदार कदकर जिससे निवेदन किया गया, उसने जैसे उसे सुना ही नहीं । केवल प्रत्युत्तरमें एक वेहूदी चेश करके बोला--चल छोकरी, चल | घोडशी कुछ नहीं बोली । ये लोग दूसरी जगहसे आये हैं | इन्हें उसकी मयौदाकी कोई घारणा नहीं हैं। अतएव दुपयोंके लिए, लगानके लिए. मर्द-ओरतका कुछ विचार न करके साधारण प्रजाके प्रति जिस आचरणका इन्हें अभ्यास है, वही ये उसके साथ भी करेंगे--उसमें कोई व्यतिक्रम न होगा | अनुनय-विनय निष्फल है; रोने-घोनेसे भी कोई सहायता करने नहीं आवेगा । अवाघ्य होनेपर हो सकता दहै कि ये राहमें ही खींच-खॉच करते लरगें--घसीटने लगें | प्रकाशइय सड़कपर अपमानकी इस चूड़ान्त क्दर्यताके चित्रने उसका मह वैीघकर जसे सामनेकी ओर ठेल दिया। राहमें चरवाहोंके लड़के गउएँ चराकर लौटे हैँ, किसान छोग दिनका काम समाप्त करके बोझ




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