धर्म वर्द्धन ग्रन्थवाली | Dharmvardhan Granthvali Ac 4143

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शाखाओं अथवा साहित्यिक परम्परां की पति के लिए लिए ग्रन्थ रचना की है। जन भंडारों में की गई ज्ञान साधना ने विद्यारसिकों के लिए प्रचुर साहित्य-सामग्री एकत्रित कर दी है। यह जन विद्वानों की एकान्त तपस्या का ही फल दे कि बहुसंस्यक अनमोल ग्रन्थ नष्ट होने से बच गए हैं और वे अब भी सबंसाधारण के लिए सुलभ हैं । राजस्थान के लब्धप्रतिए्ठ जन विद्वानों एव कवियों की संख्या भी काफी बड़ी है। इन विद्वानों ने अनेक भाषाओं में ग्रन्ध-रचना की है। जहां इन्होंन संम्कृत में ग्रन्थ लिखे हैं, वहां प्राकृत एवं अपभ्रश को भी अपनी प्रतिभा की मेंट दी है। लोकभाषा की ओर तो जन बिद्वानों का ध्यान सदा से ही रहा है। यही कारण है कि राजम्थ/नी जन सादित्य की विशालता आश्चयंजनक दै । प्राचीन राजम्थानी साहित्य को तो जन विद्वानों की विशेष देन हे । राजस्थान के जेन साहित्य-तपस्बियों में उपाध्याय घमंवद्धंन का विशिष्ट स्थान शै। ये एक नाथ दही सद्धं प्रचारक, समर्थ विद्वान एप सरस कवि के रूप में प्रतिष्ठित हैं। इनकी अपनी ग्चनाएँ काफी अधिक हैं और बे संस्कृत, पिंगल एबं डिंगल आदि अनेक भाषाओं में हैं। इतना ही नहीं, इन्होंने अपनी रचनाओं में अनेक परम्पराओं का सुन्दर निर्बाह कर के अपने साहित्य को समष्टि-रूप से एक विशिष्ट वस्तु बना दिया है, जिसके विपय में आगे जरा विस्तार से चर्चा की जाएगी ।




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