सर्व मंगल सर्वदा | Sarva Mangal Sarvada  

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आचार्य श्री नानेश - Acharya Shri Nanesh

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शान्ति चन्द्र मेहता - Shanti Chandra Mehata

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ७ ) सम्बन्धो पर बडी ही गहराई से विचार करने की आवश्यकता रहती है 1 जहा तक समष्टि की सुरक्षा का सवाल है, वह्‌ व्यक्तियोंकी सन्निष्ठा पर प्राधारित रहती है । श्रौर व्यक्ति की सन्निष्ठा का सर्जन होता है स्वागत से । यह मानिये कि प्रपनी निष्ठा के साथ पहला परिचय ही स्वागतसे होता है । भीतर नही काके, श्रपनी श्रान्तरिकता मे प्रवेश नही करे तो श्रपनी निष्ठा को पहिचनेगे ही कैसे ? निष्ठा को पहले पहिचान कर ही तो उसे सद्‌ स्वरूप दिया जा सकेगा ,। यदि सन्निष्ठा सतत जागृत रहती है तो वसे स्वागत” व्यक्तियों की समष्टि सुरक्षित ही नही 'रहती, बल्कि निरन्तर पन्लवित एवं पुष्पित भी होती रहती है । स्वागत श्रपना करर-सव का करे- अभी आपके सामने सघपतिजी ने, नगराध्यक्षती ने श्रीर उनके साथ कई गणमान्य व्यक्तियो ने व तरुणी ने स्वागत की दृष्टि से अपनी भावतोएं व्यक्त की । साधुमार्गी जैन संघ के वर्तमान अध्यक्ष जी, पूर्व श्रध्यक्षजी तथा कई भाई बहिनो ने जो बाते रखी उनके लिये भेरा एक सशोधन है । मेरा स्वागत करने के लिये इन सब महानुभावो ने जिन ऊचे शब्दो का प्रयोग मेरे लिये किया है, मैं चाहता हू कि उनसे अपने सब मिलकर सबका स्वागत कर ले । ऐसे स्वागत में अपना भी स्वागत होगा और सबका भी स्वागत होगा} किन्तु उसकी विधि भलीभाति समक लीजिये । यह विधि आध्यात्मिक विधि है। आप जानते हैं कि आप मे और सब मे चेतन्य देव का निवास है। उस चतन्य देव को श्राध्यात्मिक स्वरूप को समभकर सत्‌ चित्‌ एव श्रानन्द की गूढता मे विचरण करना चाहिये किन्तु सामान्यसू्प से अनुभव किया जाता है कि इस वर्तमान समय में वह ऐसा नही कर रहा है, वल्कि पर पदार्थों मे मोहाविष्ट होकर 'मेरी-तेरी' की पचायती में पड़ गया हे । अत उत सती चैतन्य देवो के लिये इस मगरू-गृह मे प्रवेश




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