श्री भारत धर्म्म | Shri Bharat Dharm

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Shri Bharat Dharm by पण्डित दुर्गाप्रसाद मिश्र - Pandit Durgaprasad Mishr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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योभाग्तघम्प्‌ ! ` १३ का नाम जिच प्रकार ज्योति ख्य डे उसी प्रतार वह असीम क्षान का भाण्डार भो कहलाता हुआ ज्ञानमय कदनाता इ 1 उसो जान का अग जब हमारा जोवात्मा है तब इमारे शरोसर मे रहते हुए उस का ज्नभाव क्यों न प्रकाश होगा ? सजीव शरोेर ही आता का बास स्थान है। जोव देंड को घायय करने से उस का चेतन्य लोप नद्दी हो सकता) जोयात्ा पश्च पत्र खित जल विन्दु को भाति जीव के भीतर शुद्धता है। वच्ठ क्रिया रहित हे, केवल जोवकी क्रिया का साक्षी डे) ऐसी दशा में चाहे उसे लिप्त कहो चाहे निलिप्त। जीव जड शरीरमभे रहकर ज्ञानके *कास करता! है इसमे बहुत लोगीकी धारणा दहै कि शरोरका क्रियायल ही জীন পরী जोवात्मा हैं और उस्षोसे स्वयसिद्द भावसे ज्ञान की उतृपत्ति होती है। परन्तु 'ऐसा थिचारनेसे प्रक्ति चोर पुरुषजा मैट ठीक नहीं रहता। प्रह्ति और पुरुषको एक कहना द्ोगा। कावि रेणा करे विना प्रकतिमे खयमिद मावर न्नान का मानना तो कठिनं रोया) जिम अखिल ब्रह्माख्डका प्रलये बिपय दरमन्त ज्ञानका प्ररिचय देकर भ्िताके श्रमोम मद्धनभावकी वोप करता है यदि वह मव प्ररकुतिरीका खेनदोतो नास्तिनं भे'सतन श्रीर्‌ दस्मे कया च्डासेटग्डा१ 2 इस विषयमे भ्रौर एकं वात है कि भशु्य और दूसरे दूसरे जौव॑कि शरोरस एथिवोके आदिम जो परसाम्टु मनू या, द्रम चष्ठो है। तथा आटि मे इन परमाणख्रोम्ते जो गुध था बद़ी श्रव भोर₹े। सो यदि प्रज्वतिति खयमिद भाद के विवार करकी शक्ति रो ता जीवोंकी उत्पत्तिम क्या कुछ सी डाट पनटन होतो ! प्रकतिमें ज्ञानका अमाव है इसीसे तो जात विभिष्ट जीवों को उत्पत् नहीं करणली। प्रशतिर्ते प्न्च शक्ति रत से ही अख शक्ति विशिष्ट पदार्थों के उत्पादन छगो शक्षि उसमे है। न ক্র তি




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