महावीर युग की प्रतिनिधि कथाये | Mahaveer Youg Ki Prati Nidhi Kathaye

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Book Image : महावीर युग की प्रतिनिधि कथाये  - Mahaveer Youg Ki Prati Nidhi Kathaye

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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৭ শে | अव्यक्त आनन्दानुभू। एक राजा को घूमने-फिरने का बडा शौक था। जवजीमे आता अपना अश्व सजाकर निकला पडता । एके दिन अपने साथ कु सैनिक लेकर, अश्व पर सवार होकर वह॒ वन-विहार के लिए निकला । उसका अश्व पवनगामी था । हवा से वाते करता था। अन्य कोई अश्व उसकी चाल की वरावरो 'कर ही नहीं सकता था। अत देखते-देखते ही राजा बहुत आगे निकल गया और सैनिक बहुत पीछे छूट गए । प्रचण्ड ग्रीष्म की ऋतु थी । कडी धूप पड रही थी, हवा कानो व शरीर को जला डालना चाहती थी । पशु-पक्षी भी ठण्डी और छायादार जगत में शरण लिए पडे थे । और तो ओर, ऐसा प्रतीत होता था मानो छाया भी छाया खोजती फिर रही हो । ऐसे कठिन काल में वह राजा अकेला पड गया और मार्ग भूल गया । घण्टो तक वह इधर-उधर भटकता हुआ मागं खोजता रहा, किन्तु मागं मिला ही नहीं । राजा थक कर च्ूर-चूर हो गया। प्यास के मारे उसके प्राणो पर वन आई । ग्रीष्म की उस भयावह ऋतु मे कही एक बूंद पानी भी उसे मिला नही । उसके प्राण छटपटाने लगे । अन्त मे थक हार कर, स्वय को भगवान के भरोसे छोडकर उसने एक छायादार वृक्ष के नीचे ठहर कर विश्राम करना चाहा । शन्तु वहु इतना अशक्त हो चुका था कि अश्व पर से उतर भी _न सका ।)गिर पडा और मूच्छित हो गया ।




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