कुलीनता | Kuliinataa

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Kuliinataa  by गोविन्ददास - Govinddas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ट्य | पहला अंक ७ अलग পপি লক সপ नी गन ही भरी तप टी/टी बीयर बनाम करके टीन (5 टी । [ सैनिकॉमेंसे केशरीसिंह रंगभूमिमँ आता है । छुरिका-युद्धं दोनों योद्धाओंकोी एक दुसरेके अत्यन्त सन्निकट आकर युद्ध करना पड़ता है अतः इस युद्धका आकर्षण ओर अधिक हो जाता है | अन्त यदुराय ही जीतता है । पुनः जयजयकार । रेवासुन्दी और यदुरायकी दृष्टियोंका फिर साम्मिलन । विन्ध्यवालाकी चिन्ता चली गई-सी प्रतीत होती है और अब वह रेबासुन्दरीकी ओर न देखकर यदुरायकी ओर देख रही है। चण्डपीडकी उद्वियताभे निराशाका कुछ सम्मिश्रण-सा जान पड़ता है । | छुरभी पाठक--( खड़े होकर ) छुरिका-युद्धमें मी यदुराय ही स्वे- श्रेष्ठ घोषित किया जाता है। (बैठ जाता है। ) ( पुनः जयजयकार ) चण्डपीड--( विजयसिह देवसे, एकाएक मानों किसी तन्द्रासे जागा हो ) परम भटा, यदुरायको अब गदाधरिह भीमसिह ओर केशरीसिंह तीनोंसे एक साथ युद्ध करनेकी आज्ञा दी जाय। पुरमी पाठक-( भश्व्यसे ) एक अनेकसे युद्ध करे ? चण्डपीड- क्या हानि है । अनेक बार युद्ध-स्थलपर ऐसे अवसर জা জান हैं जब एक योद्धाको अनेकसे संग्राम कलना पडता है । विजयिह देव-( सहज स्वभावसे, जो उसके स्वरसे जान पड़ता है ) हाँ, क्था हानि है ! [ रेबासुन्दरी और विन्ध्यवाला दोनोंके मुखपर क्रोधके भाव दृष्टिगोचर होते हैं । ] सुरभी पाठक-- खड़े हो, उच्च स्वससे, परन्तु उसके स्वरम अब वैसा उत्साह नहीं है) अब राजस्थानीय केशरीसिह्द, भुक्तिपति गदाघरसिह, और विषयपति भीमासह तीनोंसे अकेछा यदुराज गोंड युद्ध करेगा; क्योंकि रणभूमिम अनेक बार ऐसे अवस्तर आ जाते हैँ जब एक वीरको अनेकसे एक साथ छड़ना पड़ता है। ৯৯ শর্টস উপল আসিস ক স্পা




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