कुलीनता | Kuliinataa
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
140
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ट्य | पहला अंक ७
अलग পপি লক সপ नी गन ही भरी तप टी/टी बीयर बनाम करके टीन (5 टी ।
[ सैनिकॉमेंसे केशरीसिंह रंगभूमिमँ आता है । छुरिका-युद्धं दोनों
योद्धाओंकोी एक दुसरेके अत्यन्त सन्निकट आकर युद्ध करना पड़ता है अतः
इस युद्धका आकर्षण ओर अधिक हो जाता है | अन्त यदुराय ही जीतता
है । पुनः जयजयकार । रेवासुन्दी और यदुरायकी दृष्टियोंका फिर
साम्मिलन । विन्ध्यवालाकी चिन्ता चली गई-सी प्रतीत होती है और अब वह
रेबासुन्दरीकी ओर न देखकर यदुरायकी ओर देख रही है। चण्डपीडकी
उद्वियताभे निराशाका कुछ सम्मिश्रण-सा जान पड़ता है । |
छुरभी पाठक--( खड़े होकर ) छुरिका-युद्धमें मी यदुराय ही स्वे-
श्रेष्ठ घोषित किया जाता है। (बैठ जाता है। )
( पुनः जयजयकार )
चण्डपीड--( विजयसिह देवसे, एकाएक मानों किसी तन्द्रासे
जागा हो ) परम भटा, यदुरायको अब गदाधरिह भीमसिह ओर
केशरीसिंह तीनोंसे एक साथ युद्ध करनेकी आज्ञा दी जाय।
पुरमी पाठक-( भश्व्यसे ) एक अनेकसे युद्ध करे ?
चण्डपीड- क्या हानि है । अनेक बार युद्ध-स्थलपर ऐसे अवसर
জা জান हैं जब एक योद्धाको अनेकसे संग्राम कलना पडता है ।
विजयिह देव-( सहज स्वभावसे, जो उसके स्वरसे जान पड़ता
है ) हाँ, क्था हानि है !
[ रेबासुन्दरी और विन्ध्यवाला दोनोंके मुखपर क्रोधके भाव दृष्टिगोचर
होते हैं । ]
सुरभी पाठक-- खड़े हो, उच्च स्वससे, परन्तु उसके स्वरम अब वैसा
उत्साह नहीं है) अब राजस्थानीय केशरीसिह्द, भुक्तिपति गदाघरसिह,
और विषयपति भीमासह तीनोंसे अकेछा यदुराज गोंड युद्ध करेगा;
क्योंकि रणभूमिम अनेक बार ऐसे अवस्तर आ जाते हैँ जब एक वीरको
अनेकसे एक साथ छड़ना पड़ता है।
৯৯ শর্টস উপল আসিস ক
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