स्थितिया रेखांकित | Esthitiya Rekhankit
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
192
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आ रही थी । यो थोडा-सा ऊपर उठने पर इसी तरफ खूलने वाली तीन खिडकियो
के रास्ते अदर देखा भी जा सकता था, लेकिन वैसी जरूरत महसूस नही हुईं ।
तभी वेटर आया । बीटल बू&, नीली जीन्ज्ञ और पूरी बाहो की जर्सी । छोटी-
सी फेचकट दाढी और माथे पर सजा बालो का गुच्छा। मेरी मेज तक का
फासला तँ करते हृए उसने मृह से रायफल के जरिये गोली दागे जाने की आवाज़
निकाली । फिर पास आने पर थोडा-सा भूक कर पूछा, “कॉफी ?
“कॉफी |”
“अभी एक ?
“अभी एक ।'
हम दोनो अर्थ भरे ढग से' मुस्कुराये--वह कुछ ज्यादा, मैं कुछ कम ।
फिर उसने पूरी तरह सैनिक के अदाज मे, हाथो को अकडाए हुए, चुस्ती से' एबाउट-
टर्न किया और लेफ्ट-राइट, लेफ्ट-राइट करते हुए अदर चला गया ।
मैने घडी देखी, यहा आये हुए पद्रह मिनट हो चुके थे। वह हमेशा आधा
घटा लेट आती थी--कुछ दिनो से मैं भी आने लगा था। एक-आध बार ऐसा
भी हुआ कि वह पहले आ गई और मैं कुछेक मिनट बाद तशरीफ लाया, तब
उसने एतराज़ भरी नज़र से--जो प्रेमिकाभौ का इजारा होती है । -मेरी तरफ
देखा, पर मैंने कह दिया कि मै यहा पहले से मौजूद था और अभी-अभी, पाच
मिनट पहले, सिगरेठ लेने के लिए बाहर गया था। मुझे ताज्जुब हुआ था, वह
कैसी नादान है जो शुरू की गर्मजोशी को सदाबहार समभती है ।
तभी वह् जायी-मेरी प्रेमिका नही, एक दूसरी युवती । बाहरी दरवाजे
से दाखिल होते हुए उसने कलाई-घडी पर एक निगाह डाली थी ओर आश्वस्त-
सी हो गयी थी । शायद सही समय पर आ गयी थी। 'शुरुआत का मौसम है,
मैने उसका जायजा लेते हुए मन-ही-मन कहा | या हो सकता है, इस परसग मे
यह पहले आती हो और युवक देर से, भौर देरी का भूठा बहाना भी तन गढता
हो, आकर आत्मविश्वास से मेज पर बैठ जाता हो, “हलो' '*”। मुझे वे सिलसिले
अच्छे लगते है, जिनमे लडकी हमेशा पहले आती है और हर आहट पर दरवाजे
की तरफ चाहभरी आखो से देखती है। काश ! मेरे मन में हलकी-सी कसक
जागी, मगर मैने उसे वही दबा दिया। मुश्किल नही है--मेरा मतलब' है,
कसक दबाता**
वह मेरी बगल की मेज पर बैठ गयी। उसी कतार मे, जिसमे मेरी कुर्सी
थी । मुझे उसकी तगदिली पर खीफ हुई । अगर यहा के अलावा और कही भी
নবী, तो फुरसत के ये लमहे बीच-बीच मे उसे घूरते हुए मजे मे गुज्ञारे जा
सकते थे, लेकिन नही हह !*' मैंने भी मान से मुह फेर लिया । अपने को
४४. स्थितिया रेखाकित
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