हिन्दी उपन्यास शिल्प बदलते परिप्रेक्ष्य | Hindi Upanyas Shilp Badalte Paripraekshy

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विपय प्रवचन १५ श्राया ! ते उप-यास का अवगढ तिलस्म जासूसी उठल कद और भाव लोक वी रगीली दुनिया स खीचबर यथाथ परिस्थितिया ओर चेतन मन का व्यापक भावनाञा के घरातल पर लाए। इस परिवतन को आचाय नद दुलारे इन श्दा म “पक्त करने हैं--- उपयासा के निमाण और अनुवाद के आरम्भिक युग का पार करत ही हम हिटठी के उस युग म प्रवश्ञ करत है जिसका टिलायास प्रेमच” जी ने क्या श्रार जिसम आकर हिंदी उपयातत एक सुनिश्चित का स्वरूप का पहचान सकता तथा अपने उपस परिचित दाकर उसकी ঘুনি মলম ग्रया ॥४ प्रेमचट ने सामाजिक समस्याआ्रा झार पाता के चित्रण में अपन श्रापयासिकनिल्प का परिवश वाधा तो उनके परवर्ती मनावतानिक रुचि के क्याकारा न वयबितक' वि*नपण पर जार दिया । क्तिपय उपयासबार स्वप्नद्रप्टा वनकर प्रतीका त्म+ शिल्प के सयाजक वन | हम ”खत ह कि काई प्राचीन मायताग्रों को पढ़कर नाक भा सिक्राइन लगता है ता काइ नवीन प्रयागा क पीछे ही लाठी लकर दांडता है। रुचि बैभिन के ”स युग म क्या ग्रहणीय है क्‍या त्याज्य दसका उत्तर तो शिल्प नही द सकता हा क्सि म किस परिणाम मे क्या उपदा् है यह वह जरश्य बताता है! विल्प ही वह साधन है जिसके द्वारा उपयासकार ग्रपन विजय की खोज जाच पड़ताल और विकास वरता है। जीवन और जगत वह॒त व्यापक है 1 इनको तुतना मं व्थावार जा मानव सत्य और मायताग्रा का अ्रवपक हैं बहुत छाटा हाता है। उसवी अपना सामाए हाती हैं, सस्त्रारहानटं ग्रौर टना ह~ म्बत दप्टिकाण जिने सहार वह्‌ अपने झोप पासिक निरपकी रचना करता हे । नित्प कौ रचना उप-यास की प्रथम रचना वै माथ सावारणत' कम प्रस्पुटित हानी ह । वस स्मपवाद टा सकने है जम नरश मटेना হলিল डूबत मस्तूल না শিক प्रयाग । टिल्प उपयासकार की रुचि पाठक वी माम समय वी पुकार मे सस्तुवब रथापित करन का माध्यम है--जिल्पगत परिपक्पता प्राप्त करन वे लिए आवश्यक है कि लेखक श्र ववित्वामा, थाथी मायताश्रा जटिल मभावनाग्रा भ्रवविकसिन श्रौर हानिप्रद रतिया के प्रति विद्वाह करे श्रौर उस माग्यम का प्रथय द जा लाक मगल और `यक्ति चेतना का उतधाटक हा कांद भी । टिल्पविधान बंवत इसलिए अभिनदनाय नही कहा जा सकता कि रस बड़े वे क्थाकारा की रूचि का प्रथय मिला है। उनके द्वारा खींच दी गइ कुछ विशिष्ट टिव्प रेखायें भले ही अस्त हा वित अपने समग्र रूप म पूण एव उपात्यि नहा करी जा सक्ती, ठर निरपविधि की झपनी सामायें हैं यह मानकर चलना हामा तमी प्रचलित नितल्प प्रयागा কী নলালি गवघ्णाकीजाम्क्रतीहै । हिली रप “यासकारा न निल्पगत प्रौढता ता प्राप्त करलौ किन्तु श्रग्रचा न्मौ मर्‌ प्च क्यारा के समक्ष व नहीं रपे जा सबते, एक भ्रात घारणा है यह कहना हिंली उपयास साहित्य के अपूण अययन और अधूरे पान का द्यातत्र हागा। हिंदी उपयास बिल्त के विण यह्‌ क्या कम महत्वपूण वात है वि जिस स्थिनि का विन्नी उपयान माटियश्रौर শিক শলািঘা का यात्रा त करक॑ पहुचा है हिंदी म क्याकारा न वह झवलाकत बहुत रम वर्षों म प्राप्त कर लिया है। इस सवध मे डा० रामरतन भटनागर लिपत है-- নিলা उपयास न पराक्षा गुरू स परस तक २० वर्षो म ही पत्चिमा उपयास के विकास १५ आधुनिक साहित्य-पुष्ठ १४०




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