वैदिक यज्ञ संस्था प्रथम भाग | Vaidik Yagya Sansth pratham Bhag
श्रेणी : पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.8 MB
कुल पष्ठ :
154
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पं. वुद्ध देवजी विद्यालंकार - Pt. Wudu Devji Vidhyalakar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तजक्तचतुथ्यंतवाव्ददेवतात्वादेरप्यंगीकसैब्यतापातात् ॥ इति सबे समजसमू ॥
यो व्यासवंदेश्जनि निर्मलायस्ततो&जनि,श्रीनिवासाशिधान: ।
विद्वानभूत्सोमयाजी स पिप्टप्ु छृत्वा चाकरोत्तक्रिबन्धम् ॥|
मया रचितया पिप्टपशुमीमांसया5नया ।
श्रीसत्यदेघगुवव्जहट्रत: भ्रीयतां दरि। ॥
इति पिप्पदुर्मामांसा समाप्ता ॥
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) अथ पिष्टपशुमीमांसा॥ :
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है ॥श्रीमत्पूणयुणाणेवस्थ चदनात्साक्षात्परब्रह्मणो
नियांता चतुराननादिदिविपद्चुन्दै: शिरेभिघुता॥
या छोकात्रितयं निजे्टविषये सम्यद नियुद्धक्ते तथा$ -
निशादावपति रदकेव जननी सा मे प्रमाण श्रुति; ॥ १॥
इद खल नानाविधदु:खसंकटदुर्गमे संसारकान्तारे निमझानामर्प-स्थिरसुख-
सधोतिकासु थोतमानास्वपि मन:प्रसादमनासादथतामधिकारिणां तन्षिदृत्तये
परमानन्दावाप्तय 'च सकलशुतिस्सतीहासपुराणानां तह्ठुपकारी भूतब्रह्ममीमां-
सायाश्र सकऊपुरुपार्थात्तममो क्षप्रद्भगवत्स्वरूपज्ञापनायथ प्रदृत्तिरिति तरवसू।
तमच विद्वानसत इ्द भवति नान्य; पत्था अयनाय चिद्यते इति श्रुते: ।
तथ ब्रह्मापरोक्ष शानसुपासनिकसाध्यसिति तद॒र्थ श्रवणादिरूपों श्रह्मविचार।
कतब्य: ॥
आत्मा वारे द्रषट्य: श्रोतच्ये मन्तब्यों निदिध्यासितन्य: इति शुतेग॥
सत्र चानादिवासंनामाऊिनचिततानास परिपक्रकपायाणां बिना विषयवेराग्यं न अ्रदु-
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