वैदिक यज्ञ संस्था प्रथम भाग | Vaidik Yagya Sansth pratham Bhag

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Vaidik Yagya Sansth  pratham Bhag by पं. वुद्ध देवजी विद्यालंकार - Pt. Wudu Devji Vidhyalakar

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about पं. वुद्ध देवजी विद्यालंकार - Pt. Wudu Devji Vidhyalakar

Add Infomation About. Pt. Wudu Devji Vidhyalakar

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
तजक्तचतुथ्यंतवाव्ददेवतात्वादेरप्यंगीकसैब्यतापातात्‌ ॥ इति सबे समजसमू ॥ यो व्यासवंदेश्जनि निर्मलायस्ततो&जनि,श्रीनिवासाशिधान: । विद्वानभूत्सोमयाजी स पिप्टप्ु छृत्वा चाकरोत्तक्रिबन्धम्‌ ॥| मया रचितया पिप्टपशुमीमांसया5नया । श्रीसत्यदेघगुवव्जहट्रत: भ्रीयतां दरि। ॥ इति पिप्पदुर्मामांसा समाप्ता ॥ ्््ि शक रूपए, कि 3५७१/०११-०७४१ की 20 ) अथ पिष्टपशुमीमांसा॥ : हि) ः्‌ है ॥श्रीमत्पूणयुणाणेवस्थ चदनात्साक्षात्परब्रह्मणो नियांता चतुराननादिदिविपद्चुन्दै: शिरेभिघुता॥ या छोकात्रितयं निजे्टविषये सम्यद नियुद्धक्ते तथा$ - निशादावपति रदकेव जननी सा मे प्रमाण श्रुति; ॥ १॥ इद खल नानाविधदु:खसंकटदुर्गमे संसारकान्तारे निमझानामर्प-स्थिरसुख- सधोतिकासु थोतमानास्वपि मन:प्रसादमनासादथतामधिकारिणां तन्षिदृत्तये परमानन्दावाप्तय 'च सकलशुतिस्सतीहासपुराणानां तह्ठुपकारी भूतब्रह्ममीमां- सायाश्र सकऊपुरुपार्थात्तममो क्षप्रद्भगवत्स्वरूपज्ञापनायथ प्रदृत्तिरिति तरवसू। तमच विद्वानसत इ्द भवति नान्य; पत्था अयनाय चिद्यते इति श्रुते: । तथ ब्रह्मापरोक्ष शानसुपासनिकसाध्यसिति तद॒र्थ श्रवणादिरूपों श्रह्मविचार। कतब्य: ॥ आत्मा वारे द्रषट्य: श्रोतच्ये मन्तब्यों निदिध्यासितन्य: इति शुतेग॥ सत्र चानादिवासंनामाऊिनचिततानास परिपक्रकपायाणां बिना विषयवेराग्यं न अ्रदु-




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now