व्यक्तिवादी एवं नियतिवादी चेतना के संदर्भ में उपन्यासकार भगवतीचरण वर्मा | Vyaktiwadi Avan Niyatiwadi Chetana Ke Sandarbh Men Upanyasakar Bhagavaticharan Varma

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Vyaktiwadi Avan Niyatiwadi Chetana Ke Sandarbh Men Upanyasakar Bhagavaticharan Varma  by रमाकान्त श्रीवास्तव - Ramakant Srivastav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२. व्यक्तिवाद और उसकी परिव्याप्ति कि राजनैतिक और सामाजिक समस्याओं को अलग करके देखना अब असंभव है--इस सिद्धांत को मूर्त रूप प्रदान करने में तीन विश्व-प्रसिद्ध-क्रातियों का हाथ रहा है । व्यक्तिवादी विचारधारा को दार्शनिक चितन के स्तर से उतारकर ठोस यथाथें पर स्थापित करने में *अमे रिका की स्वातल्य-क्रांति,' फ्रांस की राज्य-क्राति' और 'युरोप की औद्योगिक क्रांति' का सर्वाधिक हाथ रहा है ।' वास्तव में परंपरा, व्यवस्था और संस्था के मुकाबले व्यक्ति की सत्ता का आरोपण उन्ही क्रांतियों के द्वारा हुआ । मनुष्य व्यवस्थारूपी मशीन का एक पुर्जा नही है बल्कि सम्पूर्ण व्यवस्था ही उसकी सुख-सुविधा के लिए है--इस सिद्धांत का प्रतिपादन इन क्रांतियों के माध्यम से हुआ । अमेरिका के स्वातंत्य-संग्राम के अवसर पर टामस जेफर्सन द्वारा तैयार किए गए ऐतिहासिक घोषणा-पत्न की कुछ शर्तें मनुष्यमात्र के बुनियादी अधिकारों को सामने रखती हैं : १. केवल अंग्रेज नहीं, सभी मनुष्य ईश्वरप्रदत्त कतिपय अविच्छेद्य अधिकारों से युक्त हैं । जिनमें जीवन, स्वतंत्रता और आनन्द की उपलब्धि मुख्य है । २. सभी शासक अपनी उचित शक्तियों को शासितों की स्वीकृति से प्राप्त करते हैं । ३. अत्याचारी शासक को उलट देना और सवंधप्रिय शासन की, यदि आवश्य- कता हो तो, अस्त्रो-शस्त्रों के बल से भी, स्थापना करना न्यायोचित है । ्रांतियों का योगदान सम्पूर्ण विश्व को प्रभावित करने वाली इन प्रसिद्ध क्रांतियों के पहले घोर सामंती युग था । सारे विश्व में राज्य और राजा के संबंध में देवी सिद्धांत प्रचलित था जिसके अनुसार राजा ईश्वर का प्रतिनिधि था । सामान्य व्यक्ति के अधिकारों की कोई कल्पना नहीं थी किन्तु सल्नहुवीं शताब्दी से जनशक्ति का जागरण हुआ और उसके विस्तार के प्रयास किए गए । जनशक्ति की पहली विजय इ ग्लेड में हुई। चात्सं प्रथम को प्रजा के सामने आत्म-ससपंण करना पड़ा । इतना ही नहीं १६८८ में इंग्लैंड में राज्यक्रांति हुई और शासन पालियामेंट के हाथों में आ गया । सभ्यता के इतिहास में राजा के देवी अधिकारों को नकारने की यह पहली घटना मानी जा सकती है । इससे' यह सिद्ध हुआ कि किसी भी प्रकार के शास न- तंत्र को मनुष्य की सुविधा के अनुसार तथा समय के अनुसार परिवर्तित किया जा सकता है । अमेरिका का स्वातंत्र्य-संग्राम इस बात पर आधारित था कि किसी भी देश को किसी अन्य भुखण्ड को उपनिवेश का दर्जा देकर उसके शोषण का अधिकार नही है। विश्व में आधुनिक चितन के लिए मागं इसी संग्राम ने खोला । कितने 1. .छ. 2. : 580 पाणफ एव पिंड काना एा करिट्ए01घ100, 826 1




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