भारतीय - शिक्षा | Bharatiya Shiksha

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Bharatiya Shiksha by रमाकान्त श्रीवास्तव - Ramakant Srivastav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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र्‌ भारतीय-शित्ता तत्कालीन समाज का उपयोगी सदस्य बनाने की क्षमता रादि लाभ. प्रद गुशों का समावेश होना आवश्यक है । सस्पूण जीवन ही शिक्षा-च्षेत्र है । जन्म से लेकर मृत्यु-पयन्त मनुष्य कुछ-न-कुछ शिक्षा ग्रहण किया करता है | यह शिक्षा चाहे मनुष्य जान- कर ग्रहण करे अथवा अनजान में हो, पर मनुष्य सदेव कुछ-न-कुछ सीखता रहता है ओर अनुभव के द्वारा भविष्य के कार्यक्रम को सुचारु रूप से चलाने का प्रयत्न करता है । अनुभव-जुन्य ज्ञान से मनुष्य कभी-कभी अपना काम तो साध लेता है, पर पूण रूप से उसकी शक्तियों का विकास नहीं हो पाता । अतएव न तो व्यक्ति विशेष को ही पूरा लाभ होता है, वरन्‌ समाज और विश्व भी मनुष्य के गुणों से वंचित रह जाता है | इसीलिये इस बात की निरन्तर आवश्यकता है कि मनुष्य की शिक्षा-दीक्षा का ठीक प्रबन्ध किया जाय ताकि व्यक्ति के साथ विश्व का भी कल्याण हो | शिक्षा का अथ पशज्ञा' शब्द दो अर्थों में प्रयुक्त होता है--एक विस्तृत अथः, दूसरा संकुचित अथ । विस्तृत अथ में जब शिक्षा शब्द प्रयुक्त होता है तब उसका तात्पय है बाल्यावस्था से लेकर प्रोढावस्था तक विकास की वे अवस्थाए जिनके द्वारा मनुष्य अपने शारीरिक, सामाजिक एवं नेतिकं वातावरण के साथ सामञ्जस्य स्थापित करता है । उन दाशं- निकों ओर शिक्षा-वैज्ञानिकों ने जिन्होंने प्रकृति-प्रदत्त शिक्षा तथा अनु- भव-जन्य ज्ञान पर विशेष जोर दिया है, शिक्षा के विस्तत अथ को ही दृष्टिकोण में रक्खा है । उनके अनुसार पारिवारिक-कत्तंव्य, धार्मिक सम्मेलन में भाग लेना, गोष्ठियों एवं सभा-सोसाइटियों में जाना अथवा मित्रों से वर्तालाप करना इत्यादि सब शिक्षा के साधन हैं। संकुचित रूप मे शिक्षा का अथं, है 'पढ़ाई-लिखाई” अथवा किसी विशेष उदेश्य को सामने रखकर बालक को ग्रभावित करना। संकु- चित रूप में शिक्षा” शब्द का प्रयोग प्रायः सभी करते हैं, अतएव




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