तत्त्व - ज्ञान | Tatva Gyan

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Tatva Gyan by डॉ. दीवानचन्द -Dr. Deewanchand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तत्व-ज्ञान : क्षेत्र, सम्बन्ध और विधि ३. धर्म और तत्व-जान “वाहर की ओर देखो ।' “अन्दर की ओर देखो 1' 'ऊपर की ओर देखो ।' प्रात विज्ञान का स्थायी आदेश है--वाहर की ओर देखों । बाहर की ओर हम देखते तो रहते ही हैं; विज्ञान कहता है कि जो कुछ देखें, उसे व्यवस्थित और गठित करें । मनोविज्ञान कहता है--“ अन्दर की ओर देखो ।' अन्दर की ओर भी हम देखते है, परन्तु अनियमित्त रुप में । में नदी के किनारे बैठा, उसके विस्तार, उसकी लहरों, उसके प्रवाह को देख रहा हूं । पीछे से एक मित्र आता है, और कहता है-- क्या कर रहे हो ?' में कहता हूं--'नदी की स्थिति को देखता हूं, और सुहावने दृश्य का आनन्द ले रहा हूं ।' मित्र के आने से पहले में वाहर की ओर देख रहा था; उसके प्रबन पूछने पर मैंने अन्दर की ओर देखना आरम्भ किया, गौर देखा कि मन क्या कर रहा था। मनोविज्ञान भी कहता है कि जी कुछ मन की वावत देखें, उसे व्यवस्थित करें । विज्ञान और मनोविज्ञान दोनों हमें तथ्यों की दुनिया में रखते हैं; हम देखते हैं कि वास्तविक स्थिति क्या है। जब हम ऊपर की ओर देखते हैं, तो हम तथ्य की दुनिया से ऊपर उठ्ते हैं, और भादर्वों की दुनिया में पहुंचते हैं । अपने अल्प स्वत्व को विद्व का केन्द्र नहीं, अपितु इसका एक तुल्छ भाग समझते हैं। धर्म हमें ऐसा करने का आदेश देता धर्म और धर्म-विवेचन या परमार्थ-विद्या में भेद है। जो परुप कभी परथिवी से १० फूट ऊंचा नहीं हुआ, वह यह वात जान सकता है कि हम चन्द्रमा तक कैसे पहुंच सकते हैं । जो पुरुष कभी तैरा नहीं, वह तैरने की विधि पर अच्छा निवन्ध लिख सकता है। इसी,तरह, यह सम्भव हैं कि एक पुरुप परमार्थ-विद्या में निपुण हो, भर उसके जीवन में धर्म का प्रभाव कुछ न हो । घ्में केवल मन्तव्य नहीं; जीवन का ढंग हूँ। प्रकाश नहीं अपितु आत्म-सिंद्धि इसका लक्ष्य है। इस लक्ष्य में मन्तव्य और कर्तव्य दोनों सम्मिलित हैं। यहां हमें, इसके मन्तव्य भाग,को सम्मुख रखकर, देखना है कि घर्म और तत्व-ज्ञान के दृप्टि-कोण में कया भेद है । इस विपय में, जैसा हम आधा कर सकते हैं, मतभेद है । फ्रांस के विचारक आगस्ट काम्ट का ख्याल है कि अपने मानसिक विकास में, मानव जाति तीन मंजिलों से युजरी है। जिस जगत में हम जीवनें व्यतीत करतें है, र्‌




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