समाधि शतक | Samadhi Shatak

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : समाधि शतक  - Samadhi Shatak

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

कुन्दलता जैन - Kundalata Jain

No Information available about कुन्दलता जैन - Kundalata Jain

Add Infomation AboutKundalata Jain

ब्रह्मचारी सीतल प्रसाद - Brahmachari Sital Prasad

No Information available about ब्रह्मचारी सीतल प्रसाद - Brahmachari Sital Prasad

Add Infomation AboutBrahmachari Sital Prasad

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
(२) श्रव श्रोसमा घिाशतक ग्रन्थ को भाषा वचनिका लिखो जाती है-- श्लोक--येन त्माऽबुध्यतःत्मेव परत्वेनेव चापरम्‌ । अक्षयानंतबोधाय तस्मे सिद्धात्मने नमः ५१ अन्वयाथं-- (येन) जिसके द्वारा (प्रात्मा) आत्मा (भ्रात्माएव) श्रात्मा रुप से ही (थ) ओर (प्रपरम्‌) प्रात्मा से भिन्न सर्व जो कुछ पर है सो (परत्वेन एवं) पररूप से ही (अश्युध्यत) जाता गया है (तस्मे) उस (अ्रक्षयानंत बोधाम) भ्रविनाज्ञी श्रौर श्रन्तरहित ज्ञान वाले (सिद्धात्मने) सिद्धात्मा को (नमः) नमस्कार हो । भावाथं--इस महान्‌ प्राध्यात्मिक प्रन्थ का प्रारम्भ करते हुए भ्रो पूज्यपाद स्वामी ने इस इलोक के द्वारा मंगलमयी श्री सिद्धात्मा को इसी लिए नमस्कार किया है कि अपने आत्म-स्वरूप का अनुभव हो, जाए। क्योंकि परम शुद्ध, सबं-कलंकरहित, निरंजन व स्वाधीन सिद्ध प्रात्मा में श्रोर श्रपने शरीर मे तिष्ठी हुए ग्रात्मा में यद्यपि व्यक्ति की ब प्रदेशों के प्राकार की श्रपेक्षा से भिन्नता है तथापि जाति की श्रपेक्षासे एकता) जितने गुण विद्ध परमात्भामे है उतने सब गुरण इस श्रपनी प्रात्सा सें भो निश्चय से प्र्थात्‌ वास्तव मे विमान है! वस्तु स्वरूप का विचार करने पर सिद्धों में और झपने घट में बिराजित श्रात्मा में गुणों को हृष्टि से कोई अन्तर नहीं हे । यद्रपि व्यवहार दृष्टि से झ्लात्मा कर्स- कलंक के न होने से सिद्ध या शुद्ध श्रोर क्ंकलंक के होने से संसारो या श्रद्ध कहलातो हे तथापि निहचय हृष्टि से तिद्ध श्रौर संसारी आत्मा के स्वरूप भ्रोर गुरो मे समानता है । জজ লিদল पानो श्रोर मेले पानी सें मेल के न होने तथा होने को श्रपेक्षा से तो भ्रन्तर है परन्तु स्वभाव की झपेक्षा दोनों पानी के स्वभाव में समानता है। मेल से मिले रहने पर भी पानी सेल के स्वभाव रूप नहीं हो जाता। यदि हो जाता होता तो भेला पानी कभी भो निर्मल नहों हो सकता था परन्तु बहु निर्मल होता देखा जाता है।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now