आत्मानुशीलम | Aatmanushashanam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
222
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१३
इन बातो को ध्यान मे रखकर इस पुस्तक के रचयिता वैद्य प्रभ्ुदयाल
कासलीवाल ने गद्य-पद्य-मय सरल और सुबोध भाषा मे आत्म-साघना
तथा आत्स-ज्ञान के उपायो की शास्त्रोक्त व्याख्या की है। इस व्याख्या के
पीछे उन्तकोी अपनी साधना तथा अपना चिन्तन-मनन है । इनके बिना
शूढ तत्वों का सम्यक् दर्शन और ज्ञान नही हो सकता ।
आत्मा के इन गरुणो और स्वभावो को वेदिक परम्परा भी स्वीकार
करती है । इस दुष्टि से आत्म-ज्ञान तथा ब्रह्म-ज्ञान शब्द पर्यायवाची हो
जाते है । दुह॒दा रण्यक उपनिषदु से याज्ञावल्क्य ने अपनी पत्नी सैन्नेयी को
उपदेश दिया है-
आत्मा वा अरे दुष्टग्य श्रोतव्यो मन्तव्यो निदिध्यासितव्यों ।
मैत्रेय्यात्मनों वा अरे दर्शनेन श्रवरोन मत्या विज्ञानेनेद सर्वं विदितम् 11
हे मैत्रेयी श्रात्मा ही देखने, सुनने, मनन करने तथा निरतर
चिन्तन करने योग्य है । जब आत्मा को देख लिया जाता है, सुन लिया
जाता है तथा जान लिया जाता है, तब सब कुछ जान लिया जाता है।
तात्पर्य यह है कि जब जीव को यह केवल-ज्ञान हो जाता है कि
यै ्रात्मा हु, तन उसे जानने को कुं शेष नही रहता मौर वह् जन्म-मरण
के बघन से मुक्त हो जाता है ।
आज वहुसख्यक जन-समुदाय राग-हं ब का शिकार होकर क्रोघ-
सान-माया-लोभ व्यामोह मे फेंसा हुआ है । जिज्ञासुओ तथा मुमुक्षुओं की
सख्या बहुत कम है। ऐसी अवस्था मे लोगो को इस ओर प्रेरित करने
की महती आवश्यकता है और यह काम इस प्रकार की उद्बोधघक पुस्तको
से हो सभव हो सकता है।
में समभता हू कि वैद्य प्रभ्ुदयाल की यह पुस्तक इस दृष्टिसे
पठनीय, मननीय तथा उपादेय है । केवल जैन मतावलम्बी ही नही,
बल्कि अन्य भारतीय सम्प्रदायो के अनुयायो भी इससे लाभ उठा सकते
है, क्योकि मोक्ष प्राप्ति के बारे मे कोई भी साम्प्रदायिक मतभेद नही,
केवल परिभाषाएँ अलगन्ञ्लग है ?
चन्द्रगुप्त वा्ष्णेय
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