अनीतिक राह पर | Anitik Rah Par

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पं. कालिकाप्रसाद - Pt. Kalikaprasad

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मोहनदास करमचंद गांधी - Mohandas Karamchand Gandhi ( Mahatma Gandhi )

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नातिनादकी योर १७ हुए, उस प्रतिज्ञाकों भंग करते हैं जो उन्होंने अपनी युवा-कालकी जीवन संगिनीके साथ बड़े उल्छाससे और विधि-विधानके साथ की थी; जो अपनी अतति-रंजित और स्वार्यमयी बहन्ताके अत्याचार्स अपने कृटुम्बियोंकोा प्रस्त किये रहते हैं ? ऐसे आदमी दूसरोंका उद्धार किस तरह कर सकते श्री व्यूरों अपने कथनका उपसंहार यों करते हें: “इस प्रकार हम चाहे जिधर निगाह डा, हम सदा यही देखते हें कि हमारे नीति-सदाचारक वन्वन तोड़ देनका फर व्यक्ति, कृष्न समाज सबके लिए बहुत वरा हुआ है, उससे हमारी इतनी हानि हुई हूँ कि वह सचमुच अवर्थनीय है । हमाईे युवा जनोंका कामुक आचरण, वेश्या- वृत्ति, यन्‍्दी पुस्तकों, चित्रोंके प्रचार और पैसे, बड़प्पन या मोग-विकासके लिए व्याह करना, व्यभिचार और तलाक, अपनेस वाया हुआ बांकपन भौर गर्भपात---इन सबने मिलकर राष्ट्रका तेजबल नप्द कर दिया और उसकी वाढ़ मार दी है। व्यक्तिमें झक्ति-संचयकी योग्यता नहीं रह गई ओर जो वच्च पंदा दा रहे हैं वे संख्यामें कम होनेके साव-साथ धारीरिक एवं मानतिक अक्तिसें भी पिछली पीड़ियोंसि हीन होने छगे । प्रीढ़ बच्चे और अधिक अच्छ स्त्री-पुरुष का नारा उन छोगोंको मोह তলা है जो वैयवितक शौर सामाजिक जीवनके विपयमें अपनी जडवादी হুচ্ বানর দই रहकर यह सोचा करते हें कि हम आदमियोंकी नस्छ भी भेड-वकरियों शओऔर घोड़ोंकी तरह पैदा की जा सकती है| आगस्त काम्तेने इन छोगोंपर तीखा ब्यंग्य करते हुए कहा था---अच्छा होता कि हमारे सामाजिक रोगोंका इलाज करनेके ये दावेदार पश्म-चैद्य वने होते, क्योंकि व्यक्ति और समाज दोनौकी जटिल मनोरचनाक्रा सम छेना तौ उनके वाकी वात नहीं । सच यह हैं कि मनुप्य जीवनमें जितनी भी दृष्ठियोंको ब्रहण करता है, जितने भी निभचय करता हैँ, जितनी भी आदतें लगाता हैँ उन सबमें एक भी ऐसी नहीं, जो उसके वेबक्तिक और सामाजिक जीवनपर बसा बसर टाडि जैसा काम-वासनाकी तृप्तिके विधयमें उसकी दृष्टि, उप्तके निश्वयों ओर उत्तकी आदतोंका पड़ा करता है ! चाहें बह उत्तको वयमें रसे या सूद 4, २ ^ চি পা,




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