हिंदी - स्वराज्य 1951 ए. सी . 4400 | Hind Swaraj 1951 Ac 4400

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Hind Swaraj  1951  Ac 4400 by पं. कालिकाप्रसाद - Pt. Kalikaprasadमहात्मा गांधी - Mahatma Gandhi

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मोहनदास करमचंद गांधी - Mohandas Karamchand Gandhi ( Mahatma Gandhi )

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कांग्रेस श्रौर उसके पदाधिकारी श्३ कि जो कड़बी बात कहनी हो व शुरूमं दी कह दूँ । मेरा फ़ार्ज़ है कि धीरजके साथ श्रापका भ्रम दूर करने की कोशिश केरूँ । पा०--शझापकी यदद बात मुझे पसन्द श्राती है । इससे मैं जिसे ठीक समझू उसे कहनेकी सुभ्के हिम्मत दो रही है फिर भी एक शंका तो रह ही गई । कांप्रेस- की स्थापनासे श्वराज्यकी नींव किस तरह पढ़ी सं०--देखिए कांग्रेसने मिन्न-सिन्न प्रान्तोंके भारतीयोको इकटा करके उनमें एक राष्ट्र दोनेकी भावना पैदा की । कांप्रेसपर सरकारकी सदा कड़ी नजर रदी है । कॉंग्रेसने हसेशा इस बातपर जोर दिया हे कि राष्ट्रके श्राय-व्यय का नियंत्रस - जनताके ही होना चादिए । कनाड़ा-सरीखे स्वराज्यकी माँग वह सदा करती रही है । वह मिलेगा या नहीं इम उसे चाहते हैं या नहीं उससे झच्छी भी कोई चीज़ हे या नददीं यह सब झलय सवाल दे । मुभे तो यही बतलाना है कि कांग्रेसने दिन्दुस्तावकों स्व॒राज्यका वसका लगा दिया । इसका श्रेय उसे न देकर किसी झऔरको देना अनुष्कित है और हम ऐसा करें तो यह हमारी कृतष्नता होगी यही नहीं इससे इमारे उदेश्यकी लिद्धिमें भी बाधा पढ़ेगी । कॉं्रेसको झगर इम झापनेसे भिन्न और रक्राज्य-प्रासिके मार्ग बाघारूप मानेंगे तो उसका उपयोग न कर सकेंगे।




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