भारतीय संस्कृति और साधना द्वितीय खण्ड | Bhartiya Sanskritik Aur Sadhna Khand 2
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
362
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about महामहोपाध्याय श्री गोपीनाथ कविराज - Mahamahopadhyaya Shri Gopinath Kaviraj
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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से दी दुस उत्न्न शोते ह और सत्यदगन से ही दु स की नि्नत्ति होती है। सक्षेप
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| दर्शन से दर्शन का अम्यास अर्थात् भावना किंचित् निकृष्ट है। सत्यदर्णन से
समग्र विश्व ই; ইটা की निवृत्ति द्यो जातीर। एक णमे दृष्टे -। दु ख दर्भन-
मार्ग के द्ग नष्ट हो जाते ह | यह अनाखब या झुद्ध पस्था है। भावनाहेय दु ख भी
दर्शन के प्रभाव से निषृत्त होते ६, किन्तु सभी एक साथ नहीं | विभिन्न क्षणों मं
चिमित्न प्रकारके दुर्खो की निवृत्ति दती ट । भवाग्र का दु,ख दर्जन के बिना नित्त
नहीं हो सकता । भावना शमय या समाधि का ही नामान्तर है | अधिकाशतः भावना
साव या मलिन होती है। एकमात्र 'सत्याभिसमय! ही अनासख्रव या निर्मल है।
टस मार्ग पर चलने वाले पथिक को शील या सदाचार का अभ्यास करना
पटता हैं | इसके बाद श्रुतमयी तथा चिन्तामयी प्रजा अजित करनी पडती है। इसके
अन्त में भावना-सार्ग में आरूढ होने की सामर्थ्य आ जाती है। आनुपज्धिकरूप से
एकान्तवास और अबुशल वितर्यों से चित्त को मुक्त रखना चाहिये । चित्त मे सन्तोप्र
तथा आकालार्ओ का हास टस मार्ग के लिए विशेष उपयोगी है। भावना-विश्ेष के
निरन्तर अभ्यास से चित्त यान्तो जाता र| उस समय स्मृति का उपस्थान होता
है | उपस्थान चार प्रकार के हैं। उनमें धर्मस्मृति का उपस्थान प्रमुस है। साधन के
बल से क्रमणः पुष्ट होने पर विशिष्ट प्रशा का उदय होता है| इस प्रजा के क्रमिक
विकास में उण्णगत, मर्धा, क्षान्ति तथा अग्रधर्म इन चार अवस्थाओं का उदय হ্বীনা
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