प्राडमौर्य विहार | Pranmorya Vihar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
234
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)द्वितीय अध्याय
सोत
्ाढ.मौकालिक इतिहास के लिपु हमारे प शिशुना वंश के तीन सघुमूति
लेषो फे धिवा रौर को$ अमिलेख नहीं दै । पौराणिक ভি ক षिवा भौर कोई विक्का
भी उपलब्ध नहीं दै, जिते हम निश्चयपूैक प्राड,मौयंक्राल का कह सकें। अत: हमारे प्रमाण
प्रमुब्तः सादित्यिक और भारतीय हैं। कोई भी विदेशी लेखक हमारा सद्दायक नहीं
दोता। मौर्यक्राल के कुछ ही पूर्व हमें बाह्य ( यूनानी ) प्रमाण कुछ अंश तक प्राप्त होते हैं। श्रतः
इस काल संबंधों सोतों को दम पाँच भागों में विभाजित कर सकते हैं-..वैरिक साहित्य,
फाव्य-पुराण, बौद्ध-सादित्य, जैन-प्रन्य तथा आदिवंश-परम्परा ।
वैदिकं साहित्य
प्रार्जिटर* के अजुवार चैंदिक सादित्य में ऐतिद्ापिक बुद्धि का परायः धाव दै शौर इपर
विश्वास नहीं क्रिया जा सकता। किन््ठु, वेद्क साहित्य के प्रमाण श्रति विश्वस्त* झौर भ्रद्धे य
हैं। इनमें संदिता, ब्राह्मण, आरएयक तय! उपनिपत् सन्निदित दें | वैदिक सादित्य अधिकांशता
प्राण बौद्ध भी है।
काव्य-पुराण
इन कोम्य-पुराणो का कोई निश्चित समय नदीं बतलाया जा सफ़ता। यूनानी लेक
इनके लेखकों के समय का निर्णय करने में हमारे सद्दायक नदी दते; क्योंकि उन्हें भारत का
अन्तर्ज्ञान नहीं था। उन्होंने प्राय. यहाँ फे घर्म, परिस्थिति, जलवायु और रीतियों का दी भ्रष्ययन
और वर्णन किया है।
जिघ्र समय सिकन्दर भारतवर्ष में थ्राया, उस समय यूनानी लेखकों के अनुयार सतोददन
प्रयलित प्रया थी । सन्तु रामायण मे खती-दाद का कदी मौ उदेव नदी दै । मदाकाव्य तात्कात्िक
सभ्यता, रीति और सम्प्रदाय का प्रतीक माना जाता है। रामायण में मक्तिलपम्पराय का भी
१, पाजिटर पे'सियंट इंडियन दिस्टोरिकल ट्रंडिशम्स, सूसिका |
३, सीतानाय प्रधान का क्रानोघ्वाजी झाफ ऐ सियंट इण्डिया,
कुलकत्ता ( १३२७ ) भूमिका 11-1३ (
३, भीफिप -अनूदित ( सर १८०० ) छणदुन, यादमौकि रामायण, मूमिका 1
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